उत्तर प्रदेश में बुनियादी ढांचा और औद्योगिक विकास में तेजी देखने को मिली है, लेकिन राज्य पर उधार का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। चालू वित्त वर्ष में प्रत्येक नागरिक पर लगभग 37,500 रुपये का ऋण है। पांच साल में यूपी का कुल कर्ज 6 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 9 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान है।
राज्य वित्त आयोग के अनुसार, इसके बावजूद सरकार का राजस्व घाटा 2.97% है, जो रिजर्व बैंक की निर्धारित सीमा के अंदर है। यही कारण है कि पिछले पांच वर्षों में बजट का आकार लगभग दोगुना हो गया। आयोग ने यह भी बताया कि राज्य पर उधार का बढ़ना विकास का संकेतक माना जा सकता है, बशर्ते यह खर्च पारदर्शिता और प्रबंधन नीति के तहत हो। यानी महत्वपूर्ण यह है कि ऋण का उपयोग और पुनर्भुगतान योजना कैसी है, न कि केवल ऋण का आकार।
ऋण का साल दर साल विकास
वर्षवार राज्य के कुल ऋण का आंकड़ा इस प्रकार रहा है:
- 2020-21: 5,64,089 करोड़
- 2021-22: 6,21,836 करोड़
- 2022-23: 6,71,134 करोड़
- 2023-24: 7,76,783 करोड़
- 2024-25: 8,46,096 करोड़
- 2025-26 (अनुमानित): 9,03,924 करोड़
राजकोषीय घाटा नियंत्रण में
राजकोषीय घाटा वह स्थिति होती है जब सरकार का कुल खर्च उसकी कुल प्राप्तियों (ऋण को छोड़कर) से अधिक होता है। यूपी का अनुमानित राजकोषीय घाटा 2025-26 में 91,400 करोड़ रुपये है, जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.97% है। यह केंद्र सरकार की सीमा 3% के भीतर आता है, जिससे पता चलता है कि वित्तीय अनुशासन बनाए रखा गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि ऋण का उपयोग सड़क, बिजली, जल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं पर किया जाता है, तो यह आर्थिक विकास में सहायक होता है और राजस्व बढ़ाता है। हालांकि अत्यधिक ऋण से ब्याज भुगतान में वृद्धि और विकासशील अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है। यूपी के मामले में, इस संतुलन को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने उधार और विकास के बीच संतुलन बनाए रखा है।