प्रधानमंत्री-सीएम हटाने वाले विधेयक: जेपीसी से आप का बहिष्कार

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने से जुड़े तीन विधेयकों की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) पर विपक्ष का विरोध और तेज हो गया है। तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बाद अब आम आदमी पार्टी (आप) ने भी साफ कर दिया है कि वह समिति में शामिल नहीं होगी। आप ने आरोप लगाया कि इन विधेयकों का असली मकसद विपक्षी नेताओं को झूठे मामलों में फंसाकर सरकारों को गिराना है।

“फर्जी मामलों में नेताओं को फंसाने का षड्यंत्र”

राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी जेपीसी में किसी सदस्य को नामित नहीं करेगी। सोशल मीडिया पर लिखते हुए उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि “भ्रष्टाचारियों का सरगना भ्रष्टाचार विरोधी कानून कैसे ला सकता है?” उनके अनुसार, इन विधेयकों का मकसद विपक्षी नेताओं को जेल भेजना और लोकतांत्रिक सरकारों को अस्थिर करना है। इसी वजह से अरविंद केजरीवाल और आप ने समिति का बहिष्कार करने का निर्णय लिया।

टीएमसी और सपा भी नहीं होंगी शामिल

शनिवार को तृणमूल कांग्रेस ने भी घोषणा की थी कि वह जेपीसी का हिस्सा नहीं बनेगी। पार्टी नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने समिति को भाजपा बहुमत के कारण “पक्षपातपूर्ण और निरर्थक” बताया। समाजवादी पार्टी ने भी संकेत दिया कि वह इसमें भाग नहीं लेगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जेपीसी विपक्षी दलों की आवाज दबाने का जरिया भर है।

विवादित बिलों पर सदन में हंगामा

गृहमंत्री अमित शाह ने 20 अगस्त को लोकसभा में तीन अहम विधेयक पेश किए—केंद्रशासित प्रदेश संशोधन विधेयक 2025, संविधान 130वां संशोधन विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2025। इनमें प्रावधान है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री यदि गंभीर आरोपों में लगातार 30 दिन तक जेल में रहता है, तो उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। इन विधेयकों को लेकर सदन में जबरदस्त हंगामा हुआ, विपक्षी सांसदों ने प्रतियां फाड़ दीं और सत्ता पक्ष से तीखी बहस हुई।

आगे की प्रक्रिया

लोकसभा और राज्यसभा ने निर्णय लिया है कि इन विधेयकों की जांच 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा सदस्यों वाली जेपीसी करेगी और अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में सौंपेगी, जिसकी संभावना नवंबर के तीसरे सप्ताह में है। लेकिन विपक्षी दलों के बहिष्कार से समिति की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
सरकार का कहना है कि नए कानून जवाबदेही और पारदर्शिता लाएंगे, जबकि विपक्ष का आरोप है कि भाजपा इन्हें राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहती है।

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