अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाए जाने के बाद कूटनीतिक और आर्थिक हलकों में इसकी चर्चा जोरों पर है। माना जा रहा है कि इस फैसले के असर को सीमित रखने के लिए केंद्र सरकार अगले कुछ दिनों में महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है। इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान की यात्रा पर रवाना हुए हैं। 28 और 29 अगस्त को होने वाली इस दो दिवसीय यात्रा में वे भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे और अपने जापानी समकक्ष शिगेरु इशिबा से मुलाकात करेंगे।
करीब सात साल बाद प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन का हिस्सा बनने जा रहे हैं। पिछली बार उन्होंने 2018 में इसमें भाग लिया था। जापान यात्रा के बाद वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के लिए चीन जाएंगे, जहाँ राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी उनकी अलग मुलाकात की संभावना है।
भारत-जापान रिश्तों की पृष्ठभूमि
भारत और जापान का संबंध सदियों पुराना है। ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि 752 ईस्वी में भारतीय साधु बोधिसेना ने जापान के नारा स्थित तोदाईजी मंदिर में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की थी। आधुनिक समय में स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जे.आर.डी. टाटा और जस्टिस राधा बिनोद पाल जैसी हस्तियों ने दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत ने सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन से अलग रहते हुए जापान के साथ स्वतंत्र शांति संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसने 1952 में द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों की नींव रखी।
आज दोनों देशों का सहयोग रक्षा, सुरक्षा, आर्थिक, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे कई क्षेत्रों तक फैला हुआ है। भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” और “सागर” पहल को जापान की “मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत” दृष्टि के साथ जोड़ा गया है। इसके अलावा दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), आपदा-रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI), और क्वाड ढांचे में भी साझेदारी निभा रहे हैं।
चर्चा के प्रमुख मुद्दे
1. क्वाड सहयोग
मोदी और इशिबा की बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा पर केंद्रित क्वाड सहयोग मुख्य विषय रहेगा। हाल के वर्षों में क्वाड का दायरा स्वास्थ्य सुरक्षा, महत्वपूर्ण खनिज, आपूर्ति श्रृंखला और उभरती प्रौद्योगिकियों तक बढ़ा है, जो भारत और जापान दोनों के लिए अहम हैं।
2. रक्षा साझेदारी
अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के बीच भारत रक्षा क्षेत्र में भी नए विकल्प तलाश रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, भारत और जापान संयुक्त रूप से रक्षा उपकरण और तकनीक विकसित करने पर समझौता कर सकते हैं। दोनों देशों की नौसेनाएँ जहाज मरम्मत जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएँ तलाश रही हैं। साथ ही, जापान ने भारत को लड़ाकू विमानों के इंजन से जुड़ी तकनीक पर सहयोग का प्रस्ताव भी दिया है
3. आर्थिक रिश्ते
भारत और जापान, दुनिया की पाँचवीं और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ, अमेरिकी टैरिफ के प्रभावों से निपटने के लिए द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को नई दिशा देने पर जोर दे सकते हैं। जापान ने अगले दस वर्षों में भारत में 10 ट्रिलियन येन (करीब 5.95 लाख करोड़ रुपये) निवेश की योजना घोषित की है। इसमें ऑटोमोबाइल, दवा, सेमीकंडक्टर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्र शामिल होंगे। प्रधानमंत्री मोदी जापान यात्रा के दौरान टोक्यो स्थित “इलेक्ट्रॉन” कंपनी भी जाएंगे, जो चिप निर्माण उपकरण की अग्रणी निर्माता है।
4. बुलेट ट्रेन परियोजना
मोदी अपने दौरे में सेंडाई स्थित तोहोकु शिंकानसेन संयंत्र का भी दौरा करेंगे, जहाँ बुलेट ट्रेन के कोच बनते हैं। संभावना है कि मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर के लिए भारत को ई10 बुलेट ट्रेन पर समझौते को लेकर बातचीत होगी। यह ट्रेन 320 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने में सक्षम है और इसमें भूकंप-रोधी तकनीक भी मौजूद है।