सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगी अवैध प्रवासियों की निर्वासन प्रक्रिया की जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से यह सवाल किया कि क्या वह अवैध प्रवासियों के प्रवेश को रोकने के लिए अमेरिका जैसी सीमा दीवार बनाने की योजना बना रही है।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जोयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने केंद्र से यह जानकारी मांगी कि अवैध प्रवासियों, विशेषकर बांग्लादेश से आने वालों, को निर्वासित करने के लिए कौन-कौन सी मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) अपनाई जा रही हैं। इस मामले में गुजरात सरकार को भी पक्षकार बनाया गया है।

केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड द्वारा दायर याचिका पर आपत्ति जताई। याचिका में आरोप था कि बांग्ला भाषी प्रवासी कामगारों को बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में लिया जा रहा है। मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता पक्ष अदालत में मौजूद नहीं है, और कुछ राज्यों में अवैध प्रवासियों पर निगरानी की जा रही है। उन्होंने जनसांख्यिकीय परिवर्तन को गंभीर मुद्दा बताया।

पीठ ने इस पर कहा कि पीड़ित पक्ष संसाधनों के अभाव के कारण अदालत तक नहीं पहुँच पा रहा होगा। जस्टिस बागची ने सीमा पर दीवार बनाने के सवाल पर मेहता से पूछा कि क्या ऐसा करने की योजना है, लेकिन मेहता ने स्पष्ट किया कि सरकार का प्रयास अवैध प्रवासियों को देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचाने से रोकने का है।

प्रशांत भूषण, याचिकाकर्ता बोर्ड के वकील, ने आरोप लगाया कि बांग्ला भाषी लोगों को जबरन बांग्लादेश भेजा जा रहा है और एक गर्भवती महिला के मामले का हवाला दिया, जिसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका कलकत्ता हाई कोर्ट में लंबित है।

जस्टिस बागची ने अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वालों और देश में रह रहे लोगों के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि देश में रहने वालों के लिए कुछ प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक है। मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि भाषा को निर्वासन का आधार नहीं बनाया जा रहा है।

सॉलिसिटर जनरल मेहता ने सुनवाई में यह भी कहा कि अधिकांश यूरोपीय देशों को भी अवैध प्रवासियों की समस्या का सामना करना पड़ता है और यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीर मुद्दा है।

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