सहारनपुर की भ्रष्टाचार विरोधी टीम ने 25 अगस्त को शामली के श्रम प्रवर्तन अधिकारी सुरेश प्रकाश गौतम को 15 हजार रुपये की रिश्वत लेते रंगेहाथ गिरफ्तार कर लिया। रिश्वत उस बूढ़े बाप से ली गई थी जिसके दो जवान मजदूर बेटों की मौत हो गई थी। ग्राम असदपुर निवासी सूबेदीन के दो बेटे मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण करते थे। एक बेटे की चार वर्ष पूर्व मृत्यु हो गई थी और दूसरा 2022 में पानीपत में सड़क दुर्घटना में मर गया था। दोनों का श्रम विभाग में पंजीकरण था और दोनों मजदूर कार्ड होल्डर होने के कारण सरकार से मिलने वाली आर्थिक सहायता प्राप्त करने के हकदार थे।
बूढ़ा सूबेदीन श्रम कार्यालय के दो वर्षों तक चक्कर काटता रहा किन्तु श्रम विभाग ने दोनों मृत मजदूरों के परिजनों को एक पैसा भी नहीं दिया। दोनों बेटों की अनुग्रह राशि सवा सात लाख रुपये बैठती थी। अन्ततः थक हार कर सूबेदीन ने श्रम अधिकारी से सुविधा शुल्क की बात की। श्रम अधिकारी ने चैक देने के एवज में 15,000 रुपये की मांग की और रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा गया।
लोगों में धारणा बन गई है कि बिना रिश्वत दिये जायज काम भी नहीं होते। कितनी शर्मनाक स्थिति है कि मृत बेटों के बूढ़े पिता को आर्थिक सहायता देने के लिए श्रम अधिकारी ने रिश्वत की मांग कर दी। यूं देखा जाए तो रिश्वतखोर का संवेदना या मनुष्यता से कोई वास्ता नहीं होता। रिश्वतखोर शीघ्र पोस्ट मार्टम करने के नाम पर पैसा झटक लेते हैं। इन लोगों में ज़मीर नाम की कोई चीज नहीं होती।
बड़ा सवाल यह है कि भारत में रिश्वतखोरों को बचाने की प्रणाली इतनी कारगर क्यों है? वे किसी तरह गिरफ्तार तो हो जाते हैं किन्तु उनकी रक्षा के लिए नामवर वकील फौरन खड़े हो जाते हैं, अदालतें झट से जमानत पर रिहा कर देती हैं और कानूनी दांव पेंच के बाद अंततः वे बहाल हो जाते हैं। समाज भी उनका तिरस्कार नहीं करता। अधिकतर मामलों में ऐसा ही होता है, यही कारण है कि रिश्वतखोरी पर लगाम नहीं लगती और इसका दायरा बढ़ता ही जाता है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’