केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और केरल डिजिटल विश्वविद्यालय के कुलपतियों के चयन प्रक्रिया से अलग करने की याचिका दाखिल की। राज्यपाल ने कहा कि दोनों विश्वविद्यालयों की कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। आर्लेकर खुद इन दोनों विश्वविद्यालयों के कुलपति भी हैं।
याचिका में कहा गया है कि दोनों विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में मुख्यमंत्री की भागीदारी ‘किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं अपने मामले का निर्णय लेने’ के सिद्धांत का उल्लंघन करेगी, जो यूजीसी विनियमों में निहित है। इसमें ‘पश्चिम बंगाल राज्य बनाम डॉ. सनत कुमार घोष एवं अन्य’ मामले का भी हवाला दिया गया।
राज्यपाल ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय अधिनियमों—एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अधिनियम और केरल डिजिटल विश्वविद्यालय अधिनियम—में उच्च शिक्षा मंत्री या राज्य सरकार को कुलपति चयन प्रक्रिया में शामिल करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री की भूमिका अनुचित होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को पूर्व न्यायाधीश सुधांशु धूलिया को कुलपति चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। राज्यपाल ने याचिका में स्पष्ट किया कि न्यायाधीश द्वारा समिति का नेतृत्व करने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामितों की भागीदारी के खिलाफ वे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि समिति में यूजीसी चेयरमैन के नामित प्रतिनिधि को शामिल किया जाए और चयनित उम्मीदवारों की सूची वर्णानुक्रम में कुलपति को भेजी जाए, ताकि अंतिम निर्णय कुलपति के पास रहे।
इससे पहले, केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और केरल डिजिटल विश्वविद्यालय के अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति को अवैध ठहराने वाली अपीलों को खारिज कर दिया था।
उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने कहा कि राज्यपाल की सुप्रीम कोर्ट में याचिका अफसोसजनक है और यह प्रयास ‘बेहद बचकाना और निराधार’ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की पहल से ही डिजिटल विश्वविद्यालय राज्य में वास्तविकता बन पाया है और प्रक्रिया को आम सहमति से सुलझाया जाना चाहिए।