हिमाचल प्रदेश में इस मानसून सीजन के दौरान बादल फटने की घटनाओं में रिकॉर्ड इजाफा देखा गया है। अब तक 50 से अधिक जगहों पर बादल फट चुके हैं, जबकि बाढ़ की 95 और भूस्खलन की 133 घटनाएं दर्ज की गई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार पिछले तीन दशकों में अत्यधिक बारिश की घटनाओं में 200 फीसदी तक वृद्धि हुई है। इसका कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ पहाड़ों पर बन रही झीलें और बांध भी माने जा रहे हैं। पहले ऐसी घटनाएं ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सीमित थीं, लेकिन अब हर साल निचले इलाकों में भी देखने को मिल रही हैं।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 से 2022 के बीच हिमाचल में केवल छह बादल फटने की घटनाएं दर्ज हुई थीं। वहीं, 2023 में जुलाई और अगस्त में तीन बड़े दौर में भारी तबाही हुई, जिसमें छह जगह बादल फटे, 32 बार बाढ़ आई और 163 भूस्खलन हुए। उस मानसून सीजन में कुल 45 बादल फटने, 83 बाढ़ और 5748 भूस्खलन की घटनाएं सामने आईं। इस साल अब तक 14 बादल फटने, 40 बाढ़ और तीन भूस्खलन की घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर, झीलों का बढ़ता आकार, जलविद्युत परियोजनाएं और अंधाधुंध निर्माण पहाड़ों को और असुरक्षित बना रहे हैं। 1979 से 2017 के बीच लाहौल-स्पीति में ग्लेशियर झीलों का आकार कई गुना बढ़ा है। साल 2000 के बाद से ग्लेशियर पिघलने की दर भी दोगुनी हो गई है।
पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु का कहना है कि ये झीलें अब ‘टाइम बम’ की तरह बन चुकी हैं। जब अत्यधिक वर्षा होती है तो झीलों की दीवार टूट जाती है और अचानक पानी छोड़ने से बादल फटने जैसी स्थिति बनती है। जलविद्युत विशेषज्ञ आरएल जस्टा के मुताबिक, तेजी से बन रहे बांध और टनल परियोजनाएं स्थानीय जलवायु को बदलकर बारिश की तीव्रता बढ़ा रही हैं। वहीं, पूर्व अभियंता सुभाष वर्मा के अनुसार, शहरीकरण और अवैध निर्माण ने प्राकृतिक जल निकासी तंत्र को नष्ट कर दिया है, जिससे पहाड़ और संवेदनशील बनते जा रहे हैं।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग से वायुमंडल में नमी और वाष्पीकरण बढ़ा है, जिससे क्यूम्यलोनिम्बस बादल (थंडरहेड्स) बार-बार भारी वर्षा और तूफान का कारण बन रहे हैं। पहले जहां महीनों की बारिश पूरे मानसून में होती थी, अब वही बारिश एक ही दिन में दर्ज की जा रही है, जिससे भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं तेज़ी से बढ़ रही हैं।
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि प्रदेश में संकट अभी टला नहीं है। आठ सितंबर को ऊना और सिरमौर, जबकि नौ सितंबर को बिलासपुर, कांगड़ा और सोलन में भारी बारिश की संभावना है। छह और सात सितंबर को हल्की से मध्यम बारिश की संभावना जताई गई है।