नई दिल्ली। राजद सुप्रीमो और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में ‘जमीन के बदले नौकरी’ घोटाले के मामले में दर्ज सीबीआई FIR रद्द करने का अनुरोध किया। उनका कहना है कि FIR आवश्यक मंजूरी के बिना दर्ज की गई, इसलिए जांच अवैध है।
लालू के वकील कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति रवींदर दूडेजा के सामने तर्क दिया कि सीबीआई ने FIR बिना PC (भ्रष्टाचार निवारण) एक्ट के तहत अनिवार्य मंजूरी के दर्ज की। सिब्बल ने कहा कि बिना मंजूरी जांच शुरू ही नहीं हो सकती थी और केवल FIR को रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मंजूरी की आवश्यकता उस समय थी जब यादव रेल मंत्रालय की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे थे।
वहीं, सीबीआई ने कोर्ट में आरोप लगाया कि लालू प्रसाद यादव जानबूझकर ट्रायल कोर्ट में अपनी दलील पूरी नहीं कर रहे। अदालत ने स्पष्ट किया कि मंजूरी की कमी का असर केवल PC एक्ट के तहत अपराधों पर होगा, IPC मामलों पर नहीं। अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही रोकने से इनकार किया था, जबकि उच्च न्यायालय ने 29 मई को भी रोकने का कोई ठोस कारण नहीं पाया था।
मामला क्या है
यह मामला 2004 से 2009 के बीच रेल मंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश के जबलपुर रेलवे क्षेत्र में ग्रुप D की नियुक्तियों से जुड़ा है। आरोप है कि नियुक्तियों के बदले कर्मचारियों ने जमीन लालू यादव के परिवार या सहयोगियों के नाम ट्रांसफर की। FIR 18 मई 2022 को दर्ज की गई थी, जिसमें लालू यादव, उनके परिवार के सदस्य, कुछ अज्ञात सरकारी अधिकारी और निजी लोग शामिल हैं। लालू ने कहा कि FIR लगभग 14 साल बाद दर्ज की गई और यह राजनीतिक बदला और प्रतिशोध है।