‘सच में बादल फटते तो बड़ी होती तबाही, तेज बारिश के कारण हुई बर्बादी’; वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा

राज्य में धराली, थराली और अन्य इलाकों में भारी प्राकृतिक आपदाओं ने कहर बरपाया। आम लोगों ने इसे बादल फटने की घटना बताया, लेकिन वैज्ञानिक इसे मानने से इनकार कर रहे हैं। राज्य में लगातार तेज और सामान्य से अधिक बारिश के कारण भारी नुकसान हुआ।

मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने बताया कि अत्यधिक बारिश और नुकसान को अक्सर बादल फटने से जोड़ा जाता है। यदि एक घंटे में 100 एमएम बारिश होती है, तब ही इसे बादल फटना माना जाता है। इस मौसम में ऐसी कोई घटना रिकॉर्ड नहीं हुई। सामान्य मौसम पैटर्न में एक घंटे में 1 से 20 एमएम बारिश को तीव्र, 20 से 50 एमएम को अति तीव्र और 50 से 100 एमएम को अत्यंत तीव्र बारिश माना जाता है।

अटरिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. माधवन नायर राजीवन ने भी कहा कि राज्य में अब तक बादल फटने की कोई मानक घटना रिपोर्ट नहीं हुई। पहाड़ों में ढलान और पानी के साथ मलबे के बहाव के कारण भारी नुकसान हुआ, लेकिन यदि बादल फटना हुआ होता तो तबाही और अधिक बड़ी होती। अब तक सरकारी विभागों ने मानसून की आपदाओं से 5700 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान का आकलन किया है।

प्रदेश में 1 अप्रैल से 9 सितंबर तक 85 लोगों की मौत हो चुकी है और 94 लोग लापता हैं। इस दौरान 3726 मकानों को आंशिक और 195 मकानों को गंभीर नुकसान पहुंचा, जबकि 274 मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए।

मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार 1 जून से 9 सितंबर तक राज्य में 1299.3 एमएम बारिश हुई, जो सामान्य 1060.7 एमएम से 22% अधिक है। केवल 1 से 9 सितंबर के दौरान भी सामान्य से 67% अधिक बारिश दर्ज की गई। उत्तराखंड में हिमाचल, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली की तुलना में सबसे अधिक बारिश हुई।

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बारिश के पैटर्न में बदलाव देखा गया है। उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री और डोकरानी में वाडिया संस्थान द्वारा अध्ययन किया जा रहा है। वाडिया संस्थान के निदेशक विनीत गहलोत ने बताया कि हर्षिल में आपदा वाले दिन कुल 20 एमएम बारिश हुई, जबकि डोकरानी ग्लेशियर क्षेत्र में उपकरणों ने पांच गुना अधिक बारिश रिकॉर्ड की।

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