गोरखपुर में लंबे समय से नमक की री-पैकिंग का कारोबार चल रहा है। थोक में कानपुर से लाया गया सस्ता नमक यहां नामी ब्रांड के पैकेट में पैक कर बाजार में बेचा जाता है। नमक में एंटी-केकिंग एजेंट पोटैशियम फेरोसायनाइड मिलाया जाता है ताकि वह आसानी से बहे और पैकिंग के दौरान फ्री फ्लो रहे। इस धंधे में प्रति पैकेट 12-15 रुपये का मुनाफा होता है, लेकिन इससे लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, लंबे समय तक ऐसे नमक का सेवन लिवर और गुर्दों के लिए हानिकारक हो सकता है।
शहर के नौसड़, ट्रांसपोर्टनगर और लालडिग्गी इलाकों में यह कारोबार चोरी-छिपे संचालित हो रहा है। थोक नमक को ब्रांडेड पैकेट में डालने के लिए नकली रैपर इस्तेमाल किया जाता है, जो इतनी सटीक होती है कि ग्राहक इसे असली से पहचान नहीं पाते। त्योहार और शादी के सीजन में इस नकली पैक वाले नमक की मांग बढ़ जाती है।
इसी तरह पानी के मिलावटी कारोबार ने भी लोगों की जिंदगी खतरे में डाल दी है। रेलवे स्टेशन, मोहल्लों और दुकानों पर बेचा जा रहा पैक्ड पानी जांच-पड़ताल के बिना ग्राहकों तक पहुंच रहा है। जांच में कई बार पैक्ड पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए गए हैं, जिससे पेट संबंधी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। गोरखपुर में करीब 600 आरओ प्लांट रोजाना औसतन 12 लाख लीटर पानी घर-घर भेज रहे हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश के पानी की जांच नहीं होती।
पानी की बिक्री अक्सर ऑटो में 1000 लीटर टंकी रखकर मोहल्लों में की जाती है और रेलवे प्लेटफॉर्म तक पहुंचाई जाती है। नियम के मुताबिक पानी केवल सील जार में उपलब्ध होना चाहिए, जिस पर निर्माता का नाम, उत्पादन तिथि और घुलनशील तत्वों की जानकारी अंकित हो। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना सील या जांच-पड़ताल वाला पानी पीने से बचना चाहिए।
डॉ. सुधीर कुमार सिंह, सहायक आयुक्त खाद्य, ने कहा कि उपभोक्ताओं को पैक्ड पानी खरीदते समय कंपनी का नाम, पैकिंग की तारीख और आईएसआई मार्का जरूर देखना चाहिए।