डीजीपी राजीव कृष्ण ने हत्या, बलात्कार, पाक्सो और अन्य गंभीर अपराधों में क्राइम सीन को तुरंत सुरक्षित करने और फोरेंसिक साक्ष्य जुटाने के लिए नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। यह एसओपी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 176(3) के तहत तकनीकी सेवा शाखा के निर्देशन में राजधानी स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा तैयार की गई है।
एसओपी में पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारियां भी स्पष्ट की गई हैं। डीजीपी ने सभी अधिकारियों को इसका सख्ती से पालन करने और लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। इसके तहत, ऐसे अपराध जिनमें सात साल से अधिक सजा का प्रावधान है, उनके मुकदमों में थाना प्रभारी सुनिश्चित करेंगे कि फोरेंसिक विशेषज्ञ अपराध स्थल का निरीक्षण करें और साक्ष्य संकलन की प्रक्रिया को वीडियोग्राफी के माध्यम से दर्ज किया जाए।
विशेष रूप से गंभीर अपराध, यौन अपराध, आतंकवाद, एनडीपीएस, हत्या और पाक्सो जैसे मामलों में सावधानी बरतने और घटनास्थल पर फोरेंसिक टीम के पास सभी आवश्यक उपकरण मौजूद रखने पर जोर दिया गया है। एसओपी के अनुसार, घटनास्थल पर केवल एक प्रवेश और निकासी मार्ग होना चाहिए और मीडिया, रिश्तेदार तथा स्थानीय लोगों को दूर रखा जाए। किसी भी वस्तु को बिना छुए निरीक्षण करना अनिवार्य है।
डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जुटाने के लिए भी दिशा-निर्देश दिए गए हैं। मोबाइल को स्विच ऑन स्थिति में छोड़ने, स्विच ऑफ होने पर चालू न करने, एयरप्लेन मोड न लगाने और लॉक हटवाने की प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है। कंप्यूटर पर किसी प्रोग्राम को बंद न करने, स्क्रीन की स्थिति और खुले एप्लिकेशन की फोटो लेने तथा हार्ड डिस्क को सीधे न निकालने का निर्देश दिया गया है। सभी साक्ष्यों को 24 घंटे के भीतर ई-साक्ष्य पोर्टल या सीसीटीएनएस पर अपलोड करना अनिवार्य होगा।
अफसरों की जिम्मेदारी:
- एसएचओ/थाना प्रभारी: अपराध स्थल को सुरक्षित करना, फोरेंसिक टीम बुलाना, प्रारंभिक रिपोर्ट संकलन, अपलोड और ट्रांसफर सुनिश्चित करना।
- पर्यवेक्षण अधिकारी (डिप्टी एसपी, एडिशनल एसपी, एसपी, एसएसपी एवं समकक्ष): एसओपी का अनुपालन सुनिश्चित करना, साक्ष्य की गुणवत्ता पर निगरानी, विवेचक को मार्गदर्शन देना और अनुशासनिक नियंत्रण बनाए रखना।