हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में पांच नाले – फोजल, सरवरी, कसोल, हुरला और मौहल – हर साल मनाली से लेकर मैदानी इलाकों तक भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इन नालों में बाढ़ आने से व्यास नदी उफान पर आ जाती है और मनाली से पंजाब तक तबाही फैलती है। लगातार हो रही भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं के कारण यह समस्या और बढ़ रही है।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण अनुसंधान संस्थान, मौहल ने इस संबंध में अध्ययन किया और इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार व राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को मई 2025 में सौंपी। अध्ययन में पाया गया कि ब्रिटिश इंडिया काल से ही इन नालों का रिकॉर्ड रखा गया था। संस्थान ने 1835 से 2020 तक के डाटा के आधार पर अध्ययन किया और ब्रिटिश लाइब्रेरी, लंदन की रिपोर्ट्स तथा मौसम संबंधी आंकड़े भी जुटाए।
अध्ययन में यह सामने आया कि 1990 से 2020 के बीच इन नालों में बाढ़ की घटनाएं 68 प्रतिशत बढ़ गई हैं। कुल्लू जिले में 1846 से 2020 तक 128 बाढ़ की घटनाएं हुईं, जिससे भारी जन और संपत्ति का नुकसान हुआ। विशेषकर ग्रीष्मकालीन मानसून में बाढ़ की संख्या 87 प्रतिशत अधिक रही।
इस साल भी फोजल, सरवरी, कसोल, हुरला और मौहल नालों ने भारी नुकसान किया। 25 जून को कसोल में आई बाढ़ में पार्क की गाड़ियां बहने से बचीं। सरवरी नाले ने पेयजल परियोजनाओं को नुकसान पहुंचाया, हुरला नाले ने जमीन, सेब और अनार के बगीचों को क्षति पहुंचाई, और मौहल में संस्थान को दो करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि इन नालों के किनारे तटीकरण और निर्माण/खनन पर रोक लगाई जाए। यदि समय पर तटीकरण किया गया और नालों के पास बसने से बचा गया, तो भविष्य में जान-माल का नुकसान कम किया जा सकता है। संस्थान आगे मनाली क्षेत्र के अन्य संवेदनशील नालों – अलेऊ, हरिपुर, मनालसु, बड़ाग्रां और खाकी – की स्थिति पर अध्ययन करेगा।
– डॉ. केसर चंद, वैज्ञानिक, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण अनुसंधान संस्थान