नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक को इस साल मैसूरु दशहरा उत्सव का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया है। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि किसी गैर-हिंदू को पारंपरिक पूजा का अधिकार देना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कदम है।
गौरतलब है कि 15 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट भी इस मामले में दायर चार याचिकाओं को खारिज कर चुका है। अदालत ने साफ कहा था कि राज्य सरकार की ओर से आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन किसी अन्य धर्म के व्यक्ति द्वारा किया जाना न तो संविधान का उल्लंघन है और न ही किसी क़ानूनी प्रावधान का।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जब यह मामला शुक्रवार को सुनवाई के लिए आया तो न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता ने कुछ ही मिनटों की सुनवाई में याचिका को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील पी.बी. सुरेश ने दलील दी कि मंदिर के भीतर पूजा कराना धर्मनिरपेक्ष कार्य नहीं है और किसी गैर-हिंदू को इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति नाथ ने संक्षेप में कहा— “खारिज।”
वकील की ओर से बार-बार आपत्तियां उठाए जाने के बाद भी अदालत का रुख वही रहा। न्यायमूर्ति नाथ ने कहा— “हमने तीन बार कह दिया है कि याचिका बर्खास्त है, और कितनी बार कहना होगा?”
मैसूरु जिला प्रशासन ने 3 सितंबर को औपचारिक रूप से बानू मुश्ताक को दशहरा महोत्सव के उद्घाटन का निमंत्रण दिया था। इसके बाद भाजपा और अन्य विरोधी संगठनों ने कड़ा विरोध जताया। उनका आरोप है कि मुश्ताक अतीत में कई बार “हिंदू विरोधी” और “कन्नड़ विरोधी” बयान दे चुकी हैं।
यही नहीं, भाजपा के पूर्व सांसद प्रताप सिंघा समेत कई अन्य लोगों ने इसको लेकर जनहित याचिकाएं दाखिल की थीं, लेकिन हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट दोनों ने ही इन्हें ठुकरा दिया।