बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने महाराष्ट्र सरकार के हालिया मराठा आरक्षण फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। ये याचिकाएँ उन आदेशों से जुड़ी हैं, जिनमें मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति के प्रमाणपत्र जारी कर उन्हें ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का निर्णय लिया गया था। ओबीसी संगठनों ने इस कदम को असंवैधानिक और मनमाना बताया है।
कुल पांच याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनमें कुनबी सेना, महाराष्ट्र माली समाज महासंघ, अहीर सुवर्णकार समाज संस्था, सदानंद मंडलिक और महाराष्ट्र नाभिक महामंडल शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार का आदेश कुनबी, कुनबी मराठा और मराठा कुनबी जातियों के प्रमाणपत्र जारी करने के मानक बदल देता है, जिससे अराजक स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस संदीप पाटिल ने कहा कि वे इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते। इसके बाद जस्टिस पाटिल और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की बेंच ने खुद को मामले से अलग कर लिया। अब ये याचिकाएँ मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंकल की बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए पेश की जाएंगी।
सरकारी आदेश और पृष्ठभूमि
सरकार का यह कदम मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जारंगे के आंदोलन के बाद आया। जारंगे ने 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान में पांच दिन तक भूख हड़ताल की थी। उनके समर्थकों ने शहर के कई इलाकों में प्रदर्शन किया, जिससे बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि मुंबई ठप हो गई है।
दो सितंबर को राज्य सरकार ने हैदराबाद गजेटियर आधारित सरकारी आदेश (जीआर) जारी किया और समिति गठन की घोषणा की। इस समिति का काम उन मराठा परिवारों की पहचान करना है जो ऐतिहासिक रूप से कुनबी दर्ज हैं। ऐसे परिवारों को कुनबी प्रमाणपत्र मिलेगा और वे ओबीसी कोटे का लाभ उठा सकेंगे।
ओबीसी समाज की प्रतिक्रिया
सरकारी फैसले से ओबीसी समाज में असंतोष है। सामाजिक न्याय और विशेष सहायता विभाग द्वारा जारी जीआर के बाद कई ओबीसी संगठनों ने चिंता जताई कि इससे उनके आरक्षण कोटे पर असर पड़ सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कदम परिपत्र तरीके से मराठा समुदाय को ओबीसी कोटे में शामिल करने की कोशिश है, जो कानूनन गलत है और इससे ओबीसी आरक्षण में कटौती हो सकती है।