22 सितंबर 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ से बड़ी खबर सामने आई कि दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प और केंद्रीय कमेटी सदस्य कट्टा रामचंद्र रेड्डी सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए। इस घटना की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गई और माओवादी संगठन में खलबली मच गई। कट्टा रामचंद्र रेड्डी सिर्फ एक नेता नहीं थे, बल्कि बस्तर के माओवादियों के किले की मजबूत रीढ़ थे।
कुछ दिन पहले ही माओवादी नेता सोनू ने शांति वार्ता पर सहमति का हवाला देते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। इसके जवाब में 20 सितंबर को विकल्प और कट्टा रामचंद्र रेड्डी ने संगठन की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया था कि “दुश्मन के सामने हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होना और उत्पीड़ित जनता के साथ विश्वासघात करना हमारी नीति नहीं।”
विकल्प और कट्टा रामचंद्र रेड्डी का सफर
विकल्प ने अपने करियर की शुरुआत वकालत से की थी और बाद में माओवादी संगठन में कानूनी सलाहकार बने। समय के साथ उन्होंने खुद हथियार उठाना शुरू किया। कट्टा रामचंद्र रेड्डी का जन्म तेलंगाना के करीमनगर जिले के तिगलागुट्टा पल्ली में हुआ। पढ़े-लिखे और महत्वाकांक्षी रेड्डी ने नांदेड़ में वकालत की पढ़ाई की और कानून एवं न्याय के गहरे पहलुओं को समझा।
बाद में भिलाई और रायपुर में अपने कानूनी अनुभव का उपयोग करते हुए उन्होंने माओवादी संगठन का शहरी नेटवर्क मजबूत किया। 2007 में उनकी पत्नी मालती की गिरफ्तारी ने उनके जीवन का मोड़ बदल दिया और इसके बाद वह अदृश्य हो गए। कुछ वर्षों बाद बस्तर के जंगलों में सक्रिय नक्सली बनकर सामने आए और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत की।
2019 में राउला श्रीनिवास की मौत के बाद, कट्टा रामचंद्र रेड्डी दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सेक्रेटरी बने। इस दौरान उन्होंने कई निर्णायक अभियानों की योजना बनाई और संगठन की ताकत चरम पर पहुंची।
नारायणपुर में अंतिम मुठभेड़
अंततः नारायणपुर के जंगलों में उनकी आखिरी लड़ाई हुई। सुरक्षाबलों ने उनके ठिकाने का पता लगाया और उन्हें मार गिराया। कट्टा रामचंद्र रेड्डी, जिन्होंने शिक्षा, कानूनी कौशल और रणनीति के बल पर वर्षों तक माओवादी नेटवर्क को संभाला, अब इतिहास बन गए। यह मुठभेड़ सुरक्षाबलों के लिए नक्सलियों से मुक्त भारत की दिशा में निर्णायक मोड़ मानी जा रही है।