देहरादून की सीबीआई विशेष अदालत ने उत्तराखंड ग्रामीण बैंक में 1.23 करोड़ रुपये की हेराफेरी के 15 साल पुराने मामले में पूर्व मैनेजर लक्ष्मण सिंह रावत और अन्य पांच आरोपियों को दोषी ठहराया। अदालत ने सोमवार को रावत को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दो साल कैद और 15 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। बाकी पांच आरोपियों—माखन सिंह नेगी, कलाम सिंह नेगी, संजय कुमार, आरसी आर्य और मीना आर्य—को एक-एक साल की जेल और 10-10 हजार रुपये जुर्माने की सजा दी गई।
सीबीआई देहरादून शाखा ने यह मामला उत्तराखंड ग्रामीण बैंक के सतर्कता विभाग की शिकायत पर 24 फरवरी 2010 को दर्ज किया था। जांच के अनुसार, बैंक की प्रेमनगर शाखा के तत्कालीन प्रबंधक रावत ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अन्य अभियुक्तों के साथ मिलकर बैंक के धन का गबन किया। 16 दिसंबर 2009 को होने वाले ऑडिट से पहले रावत ने 1.23 करोड़ रुपये फर्जी ऋण खातों में स्थानांतरित कर दिए और ऑडिट में हेराफेरी पकड़ से बचने के लिए अतिरिक्त धोखाधड़ी की।
सीबीआई ने जांच के बाद 1 अप्रैल 2011 को चार्जशीट दाखिल की थी। 2 नवंबर 2012 को अदालत ने सभी आरोप तय किए। अदालत ने सभी अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी पाया। अभियोजन पक्ष ने कुल 26 गवाहों के बयान दर्ज करवाए, जबकि बचाव पक्ष ने पांच गवाह पेश किए।
यह मामला बैंकिंग घोटालों में भ्रष्टाचार और प्रबंधकीय दुरुपयोग के गंभीर उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।