कितना दु:खदायी संयोग है कि मुज़फ़्फ़रनगर का चहेता शायर और दोस्तों का दोस्त इकरामुल्हक ‘नज्म’ यानि ‘नज्म मुज़फ़्फ़रनगरी’ अपने जन्मदिन से पांच रोज पहले ही अलविदा कह गया। 15 मई को वे जीवन के 83 वर्ष पूर्ण कर 84वें वर्ष में प्रवेश करते लेकिन 10 मई 2021 वे दुनिया छोड़ गये।
नज्म साहब मुज़फ़्फ़रनगर के विख्यात शायर मौलवी इश्हाक ‘अलम मुज़फ़्फ़रनगरी’ के शिष्य थे जिन्हें श्रीमद् भागवत का उर्दू पद्यानुवाद में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था। अलम साहब इश्क और हुस्न पर कलम चलाने के बजाय गंभीर विषयों पर लिखते थे। ‘नज्म’ साहब ने भी आम आदमी की जिंदगी, सामाजिक स्थिति और इंसानियत तथा आपसी मेल मिलाप को केंद्र में रखा।
उर्दू के साथ ही वे हिंदी में भी लिखते थे। पत्रकार के रूप में उन्होंने उर्दू-हिंदी दोनों ही भाषाओं में समाचार पत्रों में काम किया था। ‘दोआबा टाइम्स’ नाम से साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन हिंदी में किया था। उन्होंने अपनी शायरी से मुजफ्फरनगर का नाम पूरे देश में रोशन किया। 1992 में पाकिस्तान में आलमी मशायरे में भी उन्होंने शिरकत की थी। पाकिस्तान से लौटकर लिखी ‘मुहाजिर’ नामक रचना खूब चर्चित हुई थी। उनके दो काव्य संग्रह ‘दायरे खयालों के’ तथा ‘यादों का सफ़र’ प्रकाशित हुए हैं जिनमें हमारे समाज की झलक है।
नज्म साहब ने हर परिस्थिति में स्वाभिमान से जीवन जिया। स्पष्टवादिता और खरापन उनके जीवन की विशेषता थी। हमें याद है कि कभी साहित्यकारों, पत्रकारों की महफिलें उनके पुरतरन्नुम नगमों से सराबोर रहती थी। उनका दोस्ताना अंदाज और मीठा व्यवहार कभी भुलाया नहीं जा सकता।
नज्म साहब के बिचुड़ने पर उन्हीं के शब्दों को दोहरायेंगे-
जिंदगी की कैद से जिस दिन रिहा हो जाऊंगा
जैसे आया ही न था हवा हो जाऊंगा
लोग देखेंगे मुझे आईना ए अश्यार में
जब जमाने की निगाहों से जुदा हो जाऊंगा।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’