इंटरनेशनल मॉनिट्ररी फंड (IMF) की चीफ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथन (Gita Gopinath) और IMF के ही इकोनॉमिस्ट रुचिर अग्रवाल ( Ruchir Agarwal) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर बिना किसी ग्लोबल वैक्सीनेशन प्लान के सब कुछ वैसा ही चलता रहा जैसे चल रहा है तो 2021 तक भारत में 35 फीसदी से भी कम लोगों को कोरोना का टीका लग पाएगा।
इस रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी से मुक्ति पाने के लिए 50 अरब डॉलर का एक प्लान पेश किया गया है जिसमें 2021 के अंत तक दुनिया की कम से कम 40 फीसदी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है।
21 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूचित किया है कि अब तक देश में 19 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुका है। सरकार के CoWin पोर्टल से पता चलता है कि अभी तक 14.4 करोड़ लोगों ने वैक्सीन की पहली डोज ले ली है जबकि 4.14 करोड़ लोगों को वैक्सीनेशन की दूसरी डोज लग गई है।
IMF की इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अप्रैल 2021 के अंत तक पूरी दुनिया में 1.1 अरब लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। पूरी दुनिया में दवा बनाने वाली कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एंड एसोसिएशन्स (IFPMA) ने कहा है कि दुनिया भर में वैक्सीन की सप्लाई बढ़ रही है। 23 अप्रैल को आए अपने एक बयान में इसने कहा है 2021 के अंत तक पूरी दुनिया में 10 अरब वैक्सीन डोज बनाया जाना संभव है।
IMF की इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि वैक्सीन के उत्पादन और टीकाकरण के गति पर जो भी अनुमान लगाए जा रहे हैं उसमें सप्लाई चेन में जुड़ी दिक्कतों की वजह से कुछ जोखिम जरुर जुड़ा हुआ है लेकिन अप्रैल 2021 के अंत तक पूरी दुनिया में वैक्सीनेशन की गति 2 करोड़ डोज प्रति दिन तक पहुंच गई थी।
आनुपातिक तौर पर देखें तो यह पूरी दुनिया में 100 लोगों पर 0.25 लोग का अनुपात दिखाता है। अगर इसी गति से सबकुछ चलता रहा तो 2021 के अंत तक पूरी दुनिया में 6 अरब डोज का उत्पादन होगा और इतने ही डोज लोगों को लगाए जाएंगे।
भारत में टीकाकरण की गति पर नजर डालें तो वैक्सीन की कमी की वजह से पिछले 2 महीनों में वैक्सीनेशन रेट ऊपर-नीचे होती रही है। जहां अप्रैल के शुरुआत में औसतन 40 लाख डोज प्रति दिन दिए जा रहे थे वहीं मई के शुरुआत में यह दर गिरकर 20 लाख डोज प्रति दिन पर आ गई। 2 अप्रैल को भारत में एक दिन में सबसे ज्यादा 42 लाख डोज दिए गए थे।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जहां कोरोना की पहली लहर के दौरान भारत के हेल्थ सिस्टम ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। वहीं दूसरी लहर के दौरान देश का हेल्थ सिस्टम चरमराता नजर आया। बहुत सारे लोगों की मौत ऑक्सीजन, मेडिकल केयर, अस्पताल में बेड की कमी की वजह से हो गई।