चंद्र ग्रहण: 26 मई को लगेगा वर्ष का पहला चंद्र ग्रहण, क्यों कहा जा रहा है सुपर ब्लड मून जाने..

26 मई को चंद्र ग्रहण के दौरान दुनिया के कई हिस्सों में सुपर ब्लड मून दिखाई देखा. ये एक अनोखी घटना होती है जब चंद्र ग्रहण लगेगा और हमें ब्लड मून यानी लाल रंग का चांद दिखाई देगा.

इस बारे में जानकारी देते हुए अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने लिखा है, “26 मई को पूरा चांद पृथ्वी की छाया में चला जाएगा. और जब वो हमारे ग्रह की छाया में नहीं होगा, वो पहले से बड़ा और चमकदार दिखेगा.”

ये साल 2021 का दूसरा सुपर मून है. पहला सुपर मून 26 अप्रैल को देखा गया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक आंशिक चंद्र ग्रहण भारतीय समय के अनुसार दोपहर 3 बजकर 15 मिनट पर शुरू होकर 6 बजकर 22 मिनट तक चलेगा.

खास बात यह है कि चंद्रग्रहण संपूर्ण भारत में नहीं देखा जा सकेगा, क्योंकि ग्रहण का आरंभ जब होगा उस समय देश में दिन निकला होगा।

पूर्ण चंद्र ग्रहण पश्चिमी उत्तर अमेरिका, पश्चिमी दक्षिण अमेरिका और पूर्वी एशिया में देखा जा सकेगा. इसी दौरान 14 से 15 मिनट के लिए ब्लड मून नज़र आएगा.

इस वर्ष होंगे चार ग्रहण

इस साल कुल चार ग्रहण लगेंगे। इनमें से दो सूर्य ग्रहण होंगे और दो चंद्र ग्रहण होंगे।

पहला सूर्य ग्रहण 10 जून को होगा और दूसरा चार दिसंबर को लगेगा। इसके साथ पहला चंद्र ग्रहण 26 मई को और दूसरा चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को लगेगा।

सुपरमून और ब्लड मून क्या हैं?

सुपरमून: सुपर मून वह खगोलीय घटना है जिस दौरान चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है इसलिए वो बड़ा दिखता है और 14 फ़ीसदी अधिक चमकीला भी. इसे पेरिगी मून भी कहते हैं. चांद या किसी दूसरे उपग्रह की धरती से सबसे नजदीक वाली स्थिति को पेरिगी और सबसे दूर वाली स्थिति को अपोगी कहते हैं.

चांद को सुपर मून तभी कहा जाता है जब वो धरती से 3,60,000 किलोमीटर या उससे कम की दूरी पर हो.

26 मई को पेरिगी की स्थिति क़रीब 7.23 मिनट पर आएगी, जब चांद धरती से 3,57,309 की दूरी पर होगा.

कई लोग सुपर मून के धरती पर और हमारे ऊपर होने वाले असर की चर्चा करते हैं, लेकिन इस बात को साबित करने के कम ही सबूत हैं कि इसके कारण भूकंप, ज्वालामुखी का फटना, सूनामी, बाढ़ या ख़राब मौसम जैसी घटनाएं होती है.

चांद का असर समुद्र की लहरों पर ज़रूर होता है, फूलमून और न्यूमून वो समय होते हैं जब समुद्र की लहरें तेज़ होती है. लेकिन पेरिगी की स्थिति में भी इनपर औसतन पांच सेंटीमीटर से अधिक का फ़र्क नहीं पड़ता.

ब्लडमूनःचंद्र ग्रहण के दौरान चांद पृथ्वी की छाया में चला जाता है. इसी दौरान कई बार चांद पूरी तरह लाल भी दिखाई देगा. इसे ब्लड मून कहते हैं.

नासा के मुताबिक सूरज की किरणें धरती के वातावरण में घुसने के बाद मुड़ती हैं और फैलती हैं. नीला या वायलेट रंग, लाल या नारंगी रंग के मुकाबले अधिक फैलता है.

इसलिए आकाश का रंग नीला दिखता है. लाल रंग सीधी दिशा में आगे बढ़ता है, इसलिए वो हमें सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त ही दिखाई देता है. उस वक्त सूर्य की किरणें धरती के वातावरण की एक मोटी परत को पार कर हमारी आंखों तक पहुंच रही होतीं हैं.

चंद्र ग्रहण के दौरान सूर्योदय या सूर्यास्त के समय की बची हुई लाल किरणें पृथ्वी के वातावरण से होते हुए चांद की सतह तक पहुंच जाती हैं. इसलिए ग्रहण के दौरान चांद हमें लाल दिखने लगता है. पृथ्वी के वातावरण में ग्रहण के दौरान जितने ज़्यादा बादल या धूल होगी, चांद उतना ही ज़्यादा लाल दिखेगा.

ब्लूमूनः यह महीने के दूसरे फुल मून यानी पूर्ण चंद्र का मौक़ा होता है. जब फुल मून महीने में दो बार होता है तो दूसरे वाले फुल मून को ब्लू मून कहते हैं.

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