नगर निगम ग्वालियर की आदर्श गोशाला में रविवार को एक और अनोखा अध्याय जुड़ गया। गंगा दशहरे के मौके पर यहां एक जोड़े ने संतों और गोमाता के सानिध्य में अग्नि के समक्ष फेरे लेकर दांपत्य जीवन में प्रवेश किया। कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए इस विवाह समारोह में वर-वधु ने गोमाता की पूजा के बाद उनका आशीर्वाद लिया। इसके बाद विवाह की पूजा व अन्य रस्में प्रारंभ हुईं। भोजन परोसने से पूर्व गोमाता को हरी सब्जी, गुड़, चना, घी, चूनी-भूसा आदि का भोग लगाया। विवाह स्थल पर बनाए मंडप की पूरी लिपाई गाय के गोबर से की गई। मुख्य यजमान ने पूजा में बैठने से पूर्व पंचगव्य से स्नान किया। मेहमानों को सात्विक भोजन परोसा गया। जैविक अनाज से बने पकवानों में लहसुन, प्याज का इस्तेमाल नहीं किया गया। भोजन परोसने के लिए दोने-पत्तलों का उपयोग हुआ। विवाह परिसर में बांसुरी का संगीत बजाया गया और मुख्यद्वार को केले के पत्तों से सजाया गया।
इस अनोखे विवाह समारोह में मूल रूप से दतिया निवासी और वर्तमान में ग्वालियर की एक्सिस बैंक में एरिया सेल्स मैनेजर अजय भार्गव दूल्हा थे। वे लंबे समय से गोशाला से जुड़े हुए हैं। गोशाला में कार्यरत तुषांत भी अजय से अच्छी तरह परिचित है। एक दिन श्रीकृष्णायन देशी गोरक्षाशाला के सद्गुरु महाराज गोशाला में भक्तों से बात कर रहे थे, तभी अजय के संबंध के बारे में बात चली। सद्गुरु महाराज ने कहा कि तुषांत की बहन विवाह योग्य है, इन्हें अपनी जीवनसंगिनी बनाओे । सद्गुरु का आशीर्वाद मिलते ही दोनों परिवारों ने इस पर तत्काल सहमति दे दी। विवाह के लिए गंगा दशहरा का दिन तय हो गया।
गोशाला की धार्मिक पर्यटन के रूप में पहचान बनी
उमा भारती के मुख्यमंत्री कार्यकाल में यहां गोशाला का निर्माण हुआ। चार साल पहले तक नगर निगम की लालटिपारा गोशाला गायों की अकाल मृत्यु के लिए बदनाम थी। लोग यहां आना पसंद नहीं करते थे। 2017 में हरिद्वार की श्रीकृष्णायन देशी गोरक्षाशाला के संतों ने यहां का प्रबंधन संभाला। समाज के विभिन्न् लोगों के सहयोग से यहां विकास कार्य आरंभ कराए। जन्मदिन और स्वजन के पुण्य स्मृति के दिनों पर यहां दान करने के लिए प्रेरित किया। देखते ही देखते पूरी गोशाला का कायाकल्प हो गया। गायों के शेड्स का निर्माण हुआ। फर्शीकरण कराया गया। गायों के भोजन में सुधार हुआ। गायों के गोबर से गोकाष्ठ बनाया जाने लगा, जिससे अंत्येष्टि होती है। इसके साथ ही यहां गो-उत्पादों का निर्माण होने लगा। अब यह गोशाला धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो चुकी है। शहरवासी यहां जन्मदिन मनाने परिवार सहित आते हैं। यहां 7000 हजार गायों को रखा जाता है।
शादी समारोह में दिखावे के चक्कर में बहुत अनावश्यक खर्च होता हैं। हमने विचार किया कि बेवजह के खर्चों को बचाकर यह राशि गोशाला की गायों पर खर्च की जा सकती है। इसीलिए गोशाला में शादी करने का निर्णय लिया। हमने विवाह से पहले गोशाला में दान दिया है।
अजय भार्गव, दूल्हा बेटा तुषांत गोशाला में नौकरी करता है। उसने बहन अवनी की शादी गोशाला में करने के बारे में बताया तो पूरा परिवार राजी हो गया। विवाह में होने वाला अनावश्यक खर्च तो रुका ही गोशाला के पवित्र वातावरण में हुए आयोजन से नाते-रिश्तेदार खुश हुए।