सुनवाई आगे बढ़ाने के लिए गैर जरूरी आवेदन दायर करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, इसे रोकना जरूरी

सुनवाई आगे बढ़ाने के लिए बगैर किसी मतलब के गैरजरूरी आवेदन प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। इसे रोकने के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है। मकान मालिक-किराएदार के बीच चल रहे जिस केस में अंतिम बहस चुकी है और सिर्फ फैसला आना बाकी है उसकी सुनवाई किसी दूसरे केस के साथ करने के लिए आवेदन देना इसी का उदाहरण है। ऐसा करके आवेदन सिर्फ किराएदारी को लेकर चल रहे केस का फैसला टालना चाहता है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट आवेदन पर दो लाख रुपये हर्जाना लगाती है। इसमें से एक लाख रुपये मकान मालिक को और एक लाख रुपये अधिवक्ता कल्याण निधि में जमा कराना होंगे।

मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने कोर्ट में बार-बार प्रस्तुत होने वाले गैर जरूरी आवेदनों को लेकर यह टिप्पणी करते हुए आवेदन पर दो लाख रुपये हर्जाना लगाया है। मामला मकान मालिक और किराएदार के बीच का है। खातीवाला टैंक निवासी जैपालदास पंजाबी ने कुछ साल पहले दवा बाजार स्थित अपनी दुकान छोटे भाई महेश कुमार को व्यापार के लिए किराए पर दी थी। महेश कुमार ने समय पर किराया नहीं दिया तो जैपालदास ने जिला कोर्ट में छोटे भाई के खिलाफ बकाया किराया वसूली और दुकान खाली कराने के लिए केस दायर कर दिया। इसमें सुनवाई लगभग पूरी हो चुकी है और सिर्फ फैसला आना बाकी है।

इस बीच 2019 में छोटे भाई महेश कुमार ने जिला कोर्ट में बड़े भाई के खिलाफ एक केस दायर कर दिया। इसमें उन्होंने कहा कि जिस दुकान में वे व्यापार कर रहे हैं वह संयुक्त परिवार की संपत्ति है और कोर्ट उन्हें इसका मालिक घोषित करे। महेश कुमार ने यह जिला कोर्ट में यह आवेदन भी दिया कि किराएदारी और घोषणा के लिए लगे केस में चूंकी पक्षकार एक ही हैं इसलिए दोनों की सुनवाई एक साथ की जाए, लेकिन जिला कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया। इस पर छोटे भाई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी, कोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए जिला कोर्ट में चल रहे किराएदारी के केस की सुनवाई पर स्टे कर दिया था।

हाल ही में मामले की दोबारा सुनवाई हुई। बड़े भाई जैरामदास की तरफ से एडवोकेट प्रतीक माहेश्वरी ने कोर्ट को बताया कि घोषणा वाद दायर करने का उद्देश्य सिर्फ किराएदारी वाले केस की सुनवाई को आगे बढ़वाना है। किराएदारी वाले केस में सिर्फ फैसला आना बाकी है। महेश कुमार इसके पहले भी ऐसे आवेदन प्रस्तुत कर सुनवाई आगे बढ़वा चुके हैं। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने तर्कों से सहमत होते हुए छोटे भाई महेशकुमार पर दो लाख रुपये हर्जाना लगाया। कोर्ट ने माना कि गैर जरूरी आवेदन प्रस्तुत कर सुनवाई टलवाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करना जरूरी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here