प्रयागराज: अलीगढ़ विश्वविद्यालय में कथित भड़काऊ भाषण के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार से ज़रूरी मंजूरी के अभाव में डॉक्टर कफील खान के खिलाफ आरोप पत्र और संज्ञान का आदेश जुमेरात को रद्द कर दिया. अलीगढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एक आपराधिक मामले में आरोप पत्र दाखिल किए जाने के बाद खान के खिलाफ संज्ञान का आदेश पारित किया था.
भड़काऊ भाषण देने का खान पर आरोप
वर्ष 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) एवं राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध के दौरान भड़काऊ भाषण देने का डॉक्टर कफील खान पर आरोप लगाया गया था. अदालत ने आरोप पत्र और संज्ञान आदेश को इसलिए दरकिनार कर दिया क्योंकि उसके मुताबिक, ऐसे मामलों (भड़काऊ भाषण के अपराध) के लिए जिलाधिकारी द्वारा केंद्र और राज्य सरकार से भारतीय दंड संहिता की धारा 196 (ए) के तहत आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी. हालांकि यह आदेश देते हुए न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने यह स्पष्ट किया कि केंद्र और राज्य सरकार से धारा 196 (ए) के तहत आवश्यक मंजूरी के बाद अदालत द्वारा आरोप पत्र और इसका संज्ञान लिया जा सकता है.
जेल में रह चुके हैं खान
इससे पूर्व, इस मामले में खान के खिलाफ भादंसं की धारा 153ए, 153बी, 505(2) और 109 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. इसके परिणाम स्वरूप कफील खान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. बाद में पुलिस ने अलीगढ़ की अदालत में 16 मार्च, 2020 को आरोप पत्र दाखिल किया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 28 जुलाई, 2020 को इस आरोप पत्र को संज्ञान में लिया जिसे चुनौती देते हुए कफील खान ने यह याचिका दायर की थी.