इन दिनों देश और प्रदेश में नारी सशक्तिकरण, नारी सुरक्षा एवं नारी कल्याण की बहुत चर्चा है। सरकार के नेक इरादों एवं प्रयासों के बावजूद इस दिशा में उल्लेखनीय परिस्थितियां नहीं बन पा रही है। हम महज उन तीन घटनाओं का उल्लेख करना चाहेंगे जिनका सीधा संबंध नारी जाति से है और जिसके लिए मौजूदा प्रशासनिक तथा पुलिस व्यवस्था, सामाजिक कुरीतियां, अज्ञानता तथा काफी सीमा तक लचर राजनीतिक प्रतिबद्धता जिम्मेदार है।
पहला मामला मुजफ्फरनगर जिले के थाना भोपा के दो ग्रामों का है। अल्पसंख्यक समुदाय की एक लड़की का निकाह थाना भोपा के एक अन्य गांव के निवासी के साथ हुआ था। पति ने तलाक देकर व ससुराल वालों ने मारपीट की तो लड़की 3 महीने पूर्व अपने गोदी के बच्चे को लेकर मायके चली आई। 18 अगस्त को उसका शौहर कुछ लोगों के साथ ससुराल पहुंचा और परित्यक्ता पत्नी की गोद से बच्चा छीनकर फरार हो गया। पीड़िता ने भोपा पुलिस से मदद की गुहार लगाई किंतु पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। पुलिस की शिथिलता के कारण बच्चा छीनने वाले पति का हौसला बढ़ा और उसने अपनी तलाकशुदा पत्नी का आपत्तिजनक फोटो मोबाइल पर 24 अगस्त को वायरल कर दिया। इससे क्षुब्ध पति के अत्याचारों से पीड़ित महिला ने फिर पुलिस के चक्कर काटे किंतु पुलिस के कानों पर जूं नहीं रेंगी। निराश-हताश और अपमान से पीड़ित महिला ने मीडिया व मोबाइल फोन के माध्यम से पुलिस व जिले के उच्च अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि उसे इंसाफ न मिला तो वह जान दे देगी। इस पर भी पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया। परिणामस्वरूप महिला ने शनिवार को विष खा कर जान दे दी।
दूसरी घटना भी मुजफ्फरनगर जिले की ही है। थाना पुरकाजी क्षेत्र की एक महिला अपने पारिवारिक विवाद का मामला लेकर पुरकाजी थाना पहुंची किंतु किसी ने उसकी गुहार नहीं सुनी नतीजतन महिला अवसाद ग्रसित होकर थाना परिसर में बेहोश होकर गिर गई, किंतु पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया। तीसरी घटना जनपद बागपत की है। गत दिनों अल्पसंख्यक वर्ग की एक अल्पवयस्क लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ। पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार तो किया किंतु बलात्कार की शिकार लड़की के परिजनों के विरुद्ध क्रॉसकेस कायम कर दिया। इस कथित झूठे मुकदमे के विरुद्ध अपनी बात कहने आई पीड़िता की दादी की कोई बात पुलिस ने नहीं सुनी तो वृद्धा ने पेट्रोल डाल कर आत्महत्या का प्रयास किया। कथित फर्जी मुकदमे की निष्पक्ष जांच करने के बजाए बागपत पुलिस ने वृद्धा दादी व उसके परिजनों के विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया।
पुलिस के ये कारनामे मोदी और योगी शासन में ही नहीं हो रहे हैं, पहले भी होते रहे हैं। पुलिस एक्ट या मैनुवल या पीटीसी ट्रेनिंग में यह तो नहीं पढ़ाया जाता कि कैसे अपने गलत रवैये या गलतियों पर पर्दा डाल कर मुकदमे को रफा-दफा किया जाए। पुलिस का यह अलिखित संविधान अंग्रेजी जमाने से चलता आ रहा है और यदि इस देश नेता नहीं सुधरे तो अभी भी चलता रहेगा और निरीह जनता ऐसे ही पीड़ित होती रहेगी।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात