अत्यंत दुख और अति विषाद का विषय है कि छुद्र राजनीतिक स्वार्थसिद्धि के लिए बैंक वोट तलाशने-बनाने वाले राजनीति के सौदागर देश के वीरों, पुरोधाओं, उत्कृष्ट राष्ट्रभक्तों और हमारे नायकों को बिरादरी के बंधन में बांधने और देश की दो महान् देशभक्त जातियों को- जिनका सदियों से स्वर्णिम इतिहास रहा है, आपस में टकराने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।
बहुत खेद है कि भारत माता के वीर सपूत सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर सत्तालोलुप भेड़ियों ने भारत के दो महान् जातियों के बीच टकराव की स्थिति पैदा करने का घृणित प्रयास किया है। भारत में साधु-संत, योद्धाओं और प्रजावत्सल राजाओं या शासक को सदा सर्वदा से अपना हितैषी, अपना संरक्षक, अपना आराध्य मानने की पुरातन परंपरा है। कोई साधु की जात नहीं पूछता, जिस राजा ने हमारे देश के सम्मान और सीमाओं की रक्षा की, सभी राष्ट्रवासियों को जाति भेद से परे, अपनी संतान मान कर उनकी परवरिश कि उनकी स्मृति को हम अपने पूर्वज की भांति ही नमन करते आ रहे हैं। यही भारत की सनातन परंपरा है और इसी के कारण भारत भारत है।
जब तक यह सृष्टि है हमारे इन पुरखों की कीर्ति पताका फहराती रहनी है, हर सच्चे भारतीय को यह प्रण धारण करना है और अपनी विरासत या वसीयत के रूप में आने वाली संतति को भी यह मूलमंत्र देना है कि देश की आन-बान-शान को गौरवान्वित करने वाले अपने पूर्वजों को जातिबंधन में ना बांध कर उन्हें भारत की पुरातन संस्कृति एवं धर्मरक्षक के रूप में उनका आदर-सम्मान करें। यदि हम सच्चे भारतीय हैं और जाति, मजहब, धर्म से ऊपर भारत माता की अस्मिता के रखवाले हैं तो हमें यह पवित्र कर्तव्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाना है।
हमारा गुर्जर व राजपूत बिरादरी के भाइयों से विनम्र आग्रह है कि सम्राट मिहिर भोज को वे हिंदुओं की 36 बिरादरियों का महापुरुष मानकर उनका सम्मान करें। गुर्जरों व राजपूतों के टकराव से उस मनोवृत्ति के लोगों का हित साधता है जिनके षड्यंत्रों को महान् मिहिर भोज ने अपने शौर्य, पराक्रम, बुद्धिबल से ध्वस्त किया था। जय सम्राट मिहिर भोज!
गोविंद वर्मा
संपादक देहात