इसका जवाब नरेंद्र मोदी के पास भी नहीं !

यह सामान्य पुलिसिया घटना है जो भारत के किसी भी सामान्य यानि आम आदमी के साथ कहीं भी, कभी भी घट सकती है। जनपद बागपत के ग्राम डौला निवासी मनोज की मां मुन्नी देवी से 24 अक्टूबर 2020 को कुछ लोगों ने घर में घुसकर मारपीट की। मनोज बाहर नौकरी करता है। घर लौटने पर उसे घटना का पता चला तो मारपीट करने वालों का पता लगाने की कोशिश की। मारपीट करने वालों की सही पहचान होने पर उसने थाना सिंघावली अहीर को हमलावरों के नाम बताये। पुलिस ने अनेक बार तहरीर की याद दिलाने पर 24 मार्च 2021 को मुकदमा कायम कर लिया।

पुलिस ने नामजद दो लोगों को 5-6 महीने बाद हिरासत में ले लिया और शाम तक हवालात में बैठाये रखा। मनोज के कथनानुसार इस बीच थाने के एक सिपाही और आरोपितों के घरवालों के बीच डील यानी लेनेदेने का मामला तय हो गया और पुलिस ने हिरासत में लिए गए दोनों व्यक्तियों को छोड़ दिया।

मनोज ने पुलिस की कार्यप्रणाली और रवैये पर शोर-शराबा मचाया तो थानाध्यक्ष देव कुमार सिंह ने कहा कि पुलिस गलती से दो लोगों को उठा लाई थी जो मारपीट में शामिल ही नहीं थे, शाम को पता चला कि वे बेगुनाह हैं तो उन्हें छोड़ दिया गया। थानाध्यक्ष के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि महीनों बीत जाने के बाद सही हमलावर उसकी गिरफ्त में क्यों नहीं आ रहे हैं?

मनोज ने आरोप लगाया है कि उसके पास मोबाइल फोन की रिकॉर्डिंग है जिसमें पुलिस ने आरोपितों व बिचौलिये के बीच बातचीत का ब्यौरा है, लेकिन पुलिस कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है।

यह प्रकरण पुलिसिया कार्यप्रणाली का एक नमूना है। दशकों से पुलिस ऐसे ही काम करती चली आई है और आगे भी ऐसा होता रहेगा। यहां यह बताना जरूरी है कि मनोज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा प्रणाली में तैनात सिपाही है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में नियुक्त सिपाही के साथ पुलिस का व्यावहार है तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा। इसका उत्तर शायद नरेंद्र मोदी भी न दे पायें जिनकी सुरक्षा को मनोज तैनात है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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