दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य की सरकार के उस आदेश पर रोक लगा है, जिसमें दिल्ली सरकार ने 33 बड़े निजी अस्पतालों में 80 फीसदी आईसीयू बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया था. इस मामले में दायर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर रोक लगाई है. कोर्ट ने कहा है कि पहली नजर में दिल्ली सरकार का फैसला मनमाना, अनुचित और मूल अधिकारों का हनन लगता है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र से जवाब भी मांगा है.
एसोसिएशन ऑफ हेल्थ केयर प्रोवाइडर नाम की संस्था ने दिल्ली सरकार के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इस याचिका पर सुववाई करते हुए न्यायमूर्ति नवीन चावला ने कहा कि दिल्ली सरकार का 13 सितम्बर का आदेश प्रथम दृष्ट्या ‘मनमाना, अनुचित एवं नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन’ प्रतीत होता है. अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 16 अक्टूबर की तारीख तय की है.
कोर्ट में एसोसिएशन ने कहा कि यह 33 अस्पताल उसके सदस्य हैं और दिल्ली सरकार के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि यह विवेकहीन तौर पर पारित किया गया है. जबकि दिल्ली सरकार ने अपने आदेश का बचाव करते हुए कहा कि यह केवल 33 अस्पताल हैं और 20 प्रतिशत आईसीयू बिस्तर अन्य मरीजों (जिन्हें कोरेाना वायरस नहीं है) के लिए आरक्षित रहेंगे. साथ ही आदेश पारित करते समय वायरस के अचानक बढ़ते मामलों को भी ध्यान में रखा गया.