ईंटो पर जीएसटी बढ़ाने का बट्टा मालिकों ने किया विरोध

शामली। एक तरफ तो देश के प्रधानमंत्री वर्ष 2022 तक गरीबों को आवास देने की बात करते हैं तो वहीं दूसरी ओर ईट भट्टो पर जीएसटी बढ़ा देते हैं। क्या ऐसे में गरीबों की जेब पर और आम जनता की जेब पर पढ़ने वाला यह भार आम आदमी के सर पर छत दे पाएगा या नही। यह सवाल खुद भट्ठा एसोसिएशन जीएसटी काउंसिल से पूछ रही है। क्योंकि शामली में पहुंचे अखिल भारतीय ईट निर्माता संघ, उत्तर प्रदेश ईट निर्माता समिति के अधिकारियों ने ईट भट्टो पर बढ़ाई गई जीएसटी को गलत बताया है। जिसके चलते उन्होंने वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी और वित्त मंत्री से बात भी की है लेकिन कोई समाधान नही निकला है। वित्त मंत्री ने जीएसटी पर विचार विमर्श करने की बात कही है। वहीं जब तक जीएसटी के वन नेशन वन टैक्स योजना के नियमों में बदलाव नहीं कि जाता तब तक भट्टा एसोसिएशन का सरकार को जगाने का यह कार्यक्रम जारी रहेगा।
दरअसल 17 सितंबर को लखनऊ में जीएसटी काउंसिल की एक बैठक हुई थी। जिसमें ईट भट्टा टैक्स के प्रावधान में बदलाव किया गया है। जिसके बाद ईट भट्टा मालिकों ने जीएसटी की योजना वन नेशन वन टैक्स के प्रधान की हत्या करना बताया है। क्योंकि 17 सितंबर की बैठक में जीएसटी के प्रावधनों में बदलाव करते हुए ईट भट्टा पर लगने वाले टैक्स को अलग ही रूप दिया गया है। जिसमें ईट भट्टों पर लगने वाले 1% टैक्स की जगह 6% और 5% की जगह 12% टैक्स लागू किया गया है। वहीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में लिए गए इस निर्णय से उत्तर प्रदेश भट्टा एसोसिएशन अब जीएसटी के विरोध में खड़ा हो गया है। भट्टा मालिकों का कहना है कि हमारे उत्पाद फ्लाइस ईट को 12% से घटाकर 5% कर दिया गया है। भट्टों पर टैक्स का जो अलग से स्लैब तैयार किया गया है उसको लेकर भट्टा एसोसिएशन के महामंत्री यूपी के वित्त राज्य मंत्री पकंज चौधरी और वित्त मंत्री सुरेश खन्ना से भी मिले थे। जिसमें उन्होंने माना है कि जीएसटी काउंसिल में टैक्स की बढ़ोतरी में कुछ ना कुछ तो कमी रही है। उनको लग रहा था कि 5% में 1% की बढ़ोतरी की गई है जबकि जीएसटी काउंसिल की बैठक में 1% में 5% की वृद्धि की गई है। जिसके लिए भट्टा व्यापारियों पर यह अतिरिक्त बोझ डालने का काम किया गया है। वही कोरोना महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश के भट्टा व्यापारियों ने भट्टो पर रहने वाले बाहरी 50 लाख मजदूरों को निरंतर रोजगार देते हुए उनका पालन पोषण किया है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में 20000 से भी ज्यादा ईट भट्टे हैं। वही जीएसटी काउंसिल की बैठक में लिए गए निर्णय ने उत्तर प्रदेश की भट्टा एसोसिएशन पर एक अलग से बोझ डालने का काम किया है। इतना ही नहीं पिछले वर्ष हमने कोयला 8 हज़ार रुपये टन खरीदा था जो आज हमें 20 हज़ार रुपये टन में मिल रहा है। वहीं सरकार इस मामले पर कोई भी नियंत्रण नहीं कर पा रही है। क्योकि यहां कोयला व्यापार के एक मात्र इम्पोर्टर है वो भी केवल आडवाणी हैं। हमारी सरकार से यही गुजारिश है कि वह कोयले के मूल्य पर नियंत्रण करें। इसके लिए हम प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को पत्र भी लिख चुके हैं। साथ ही एनजीटी के आदेश के बाद अब हम एनसीआर में भट्टो को बंद करने की कगार पर आ गए हैं जबकि भट्टा मालिकों ने अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर एनजीटी के नियम को ध्यान में रखते हुए एवं वातावरण को शुद्ध करने के लिए हाई ड्राफ्ट भट्टों का निर्माण किया है। ऐसा लगता है कि सरकार के कुछ प्रशासनिक अधिकारी ना जाने किस प्रकार की मदद पा रहे हैं और मदद दे रहे हैं जो वे इस कुटीर उद्योग को बंद करने की ओर कदम पर कदम बढ़ा रहे है।

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