कोविशील्ड के बाद अब कोवैक्सीन सवालों के घेरे में, आपको कितना डरने की जरूरत है?

एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन के बाद अब कोवैक्सीन सवालों के घेरे में आ गई है. कोवैक्सीन भारत की स्वदेशी वैक्सीन है जिसे भारत बायोटेक ने बनाया है. नई स्टडी में पता चला है कि कोवैक्सीन लगवाने वाले लगभग एक तिहाई लोगों में एक साल बाद साइड इफेक्ट्स देखने को मिले, जैसे सांस संबंधी इंफेक्शन, स्किन से जुड़ी बीमारियां और ब्लड क्लॉटिंग/खून के थक्के.

ताजा स्टडी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के कुछ शोधकर्ताओं ने मिलकर की है. रिसर्च साइंस जर्नल स्प्रिंगरलिंक में पब्लिश हुई है. शोधकर्ताओं ने ये स्टडी जनवरी 2022 से अगस्त 2023 के बीच की है. इसमें कुल 1,024 लोगों को शामिल किया गया. जिनमें 635 किशोर और 291 वयस्क शामिल थे. इन लोगों से वैक्सीनेशन के एक साल बाद AESI’s यानी एडवर्स इवेंट ऑफ स्पेशल इंटरेस्ट को लेकर को लेकर फोन पर इंटरव्यू लिया गया था.

स्टडी में क्या क्या पता चला?

स्टडी में पाया गया कि जिन व्यक्तियों ने भी कोवैक्सीन की डोज ली थी उनमें से करीब एक तिहाई लोगों में AESI यानी गंभीर साइड इफेक्ट विकसित हुआ. दूसरी जरूरी बात कि लगभग 50 फीसदी लोगों ने इंफेक्शन की शिकायत की. ज्यादातर मामले अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन के थे. मतलब सांस से जुड़े इंफेक्शन.

जिन 635 किशोर को इस स्टडी में शामिल किया गया उनमें 10.5 फीसदी लोगों को स्किन डिसऑर्डर हुए. नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर 4.7% किशोरों में पाए गए और जनरल डिसऑर्डर 10.2% किशोरों में देखे गए. अब जो 291 वयस्क स्टडी का हिस्सा थे उनमें भी आमतौर पर किशोरों वाली समस्याएं ही देखी गई.

वयस्कों में जनरल डिसऑर्डर का प्रतिशत 8.9% था. मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़े डिसऑर्डर 5.8% फीसदी लोगों में पाए गए और नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर 5.5% व्यस्कों में देखे गए. महिलाओं पर कोवैक्सीन की वजह से गंभीर साइड इफेक्ट्स हुए.

स्टडी में भाग लेने वाली 4.6% महिलाओं पीरियडस यानी मासिक धर्म संबंधी असामान्यताएं देखी गईं. 2.7% में नेत्र संबंधी समस्याएं और 0.6% महिलाओ में हाइपोथायरायडिज्म देखा गया. 0.3% में स्ट्रोक और 0.1% प्रतिभागियों में गुलियन बेरी सिंड्रोम. शॉर्ट फॉर्म GBS, उसकी पहचान भी हुई. GBS एक ऐसी रेयर बीमारी है जो लकवे की ही तरह शरीर के बड़े हिस्से को धीरे-धीरे सुन्न कर देती है.

कोवैक्सीन की वजह से कितनी मौतें?

स्टडी में जितने लोग शामिल हुए थे उसमें से रिसर्चर्स ने पाया कि चार वयस्कों की मौत भी हुई. इसमें तीन महिलाएं और एक पुरुष शामिल थे. चारों को डायबिटीज की समस्या थी, इसमें से तीन व्यस्कों को हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कत भी थी. चार में से दो मौतें स्ट्रोक के चलते हुई.

एक मौत पोस्ट-कोविड राइनोसेरेब्रल म्यूकोर्मिकोसिस की वजह से हुई. राइनोसेरेब्रल म्यूकोर्मिकोसिस जिसे जाइगोमाइकोसिस के नाम से भी जाना जाता है. ये एक ऐसी दुर्लभ और घातक बीमारी है जो मुख्य रूप से नाक, परानासल साइनस और मस्तिष्क को प्रभावित करती है.

चौथी मौत एक महिला की हुई जो वैक्सीनेशन के बाद कई बार बेहोश हुई थी. हालांकि उसके बेहोश होने का कारण पता नहीं है. स्टडी में कहा गया है कि कोवैक्सीन की दो डोज लेने वाले वयस्कों की तुलना में तीन खुराक लेने वाले वयस्कों में AESI का जोखिम चार गुना ज्यादा था.

इस पर कोवैक्सीन बनाने वाली भारत बायोटेक की सफाई भी आई है. कंपनी ने कहा कि इस तरह के अध्ययन को थोड़ा और प्रभावी बनाने की जरूरत है.

रिसर्च से कितना डरने की जरूरत?

इंफेक्शियस डिजीज स्पेशलिस्ट इश्वर पी गिलादा कहते हैं कि भारत में जितनी भी वैक्सीनेशन हुई है उसमें 90 पर्सेंट लोगों ने कोविशील्ड लिया है और करीब 9.5 फीसदी लोगों ने कोवैक्सीन लगावाई है और बाकी जितने भी बचें उन्होंने दूसरी कंपनी की वैक्सीन ली है.

वो कहते हैं कि इस स्टडी की सबसे अच्छी बात है कि ये बीएचयू ने की है. लेकिन इसकी सबसे बड़ी खामी है कि इसमें पॉपुलेशन कंपैरिजन नहीं हुआ है. मतलब कि अगर रिसर्च में उन 1000 लोगों की स्टडी की गई है जिन्होंने वैक्सीन ली है तो उन 1000 लोगों को भी शामिल करना चाहिए था जिन्होंने नहीं ली थी. स्टडी के दौरान नॉन वैक्सीनेटेड सब्जेक्ट्स की सुरक्षा प्रोफाइल की तुलना और बाकी टीके लेने वाले लोगों की सुरक्षा प्रोफाइल की तुलना भी की जानी चाहिए.

इश्वर पी गिलादा का ये भी मानना है कि चूंकि रिसर्च साइंस जर्नल स्प्रिंगरलिंक में पब्लिश हुई है जो कि एक जर्मन ब्रिटिश कंपनी है. एस्ट्राजेनेका कोविशील्ड वैक्सीन को भी जर्मन ब्रिटिश कंपनी ने बनाया था. जब कोविशील्ड की बदनामी हुई तो उसे फास्ट्रैक करने की कोशिश में इसे पब्लिश किया गया ताकि लोगों तक ये बात पहुंचाई जाए कि कोवैक्सीन भी सेफ नहीं है.

कोविशील्ड का क्या विवाद?

ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट में स्वीकार किया है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन से गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं. कुछ दिन पहले वैक्सीन वापस भी ले ली थी. इस वैक्सीन को हम भारत में भारत में कोविशील्ड के नाम से जानते हैं. एस्ट्राजेनेका ने इस वैक्सीन को यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर तैयार किया और सीरम इंस्टीट्यूट के साथ पार्टनरशिप कर भारत भेजा. वैक्सीन लेने के बाद मौत, ब्लड क्लॉटिंग और दूसरी गंभीर दिक्कतों की वजह से एस्ट्राजेनेका कानूनी कार्रवाई का सामना कर रही है. कई परिवारों ने आरोप लगाया था कि वैक्सीन के चलते गंभीर साइड इफेक्ट हुए हैं.

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