जलवायु परिवर्तन से भारत को बड़ा आर्थिक नुकसान

एशिया के लिए 2020 इतिहास का सबसे गर्म साल रहा है। यह बात सामने आई है संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट में। यूएन के वैश्विक मौसम संस्थान (वर्ल्ड मीटिओरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन) ने अपनी सालाना प्रकाशित होने वाली ‘स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया’ रिपोर्ट में कहा है कि महाद्वीप के हर क्षेत्र में बढ़ते तापमान का प्रभाव पड़ा है। 1981-2010 के औसत तापमान के मुकाबले एशिया में 2020 में तापमान करीब 1.39 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज हुआ। 

WMO ने इस रिपोर्ट के जरिए कहा, “जलवायु परिवर्तन और कठोर मौसम ने 2020 में पूरे एशिया पर प्रभाव डाला, जिसकी वजह से हजारों लोगों की जान चली गई और लाखों लोगों को शरणार्थी बनना पड़ा। इन स्थितियों से निपटने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए गए, जबकि इस दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरण को होने वाला नुकसान जारी रहा।”

रिपोर्ट में कहा गया, “इन स्थितियों के चलते सतत विकास की प्रक्रिया पर संकट आ गया है। इससे खाने और पीने के पानी की कमी और असुरक्षा पैदा हुई है। इसके अलावा स्वास्थ्य जोखिम और पर्यावरण को होने वाला नुकसान बढ़ता जा रहा है।” इसके साथ ही रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन की वजह से देशों को होने वाले औसत आर्थिक नुकसानों का भी ब्योरा दिया गया है। जहां चीन की अर्थव्यवस्था को 2020 में जलवायु परिवर्तन से करीब 17 लाख करोड़ रुपये (238 अरब डॉलर) का नुकसान हुआ है, वहीं भारत को 6.5 लाख करोड़ (87 अरब डॉलर) का नुकसान पहुंचा। इसके अलावा जापान को 6.2 लाख करोड़ (83 अरब डॉलर) और दक्षिण कोरिया को 1.7 लाख करोड़ रुपये (24 अरब डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ा।

हालांकि, अगर जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को अर्थव्यवस्था के आकार के हिसाब से देखें, तो एशिया में सबसे ज्यादा नुकसान ताजिकिस्तान को हुआ, जिसका औसत नुकसान जीडीपी के मुकाबले 7.9 फीसदी रहा, दूसरे नंबर पर कंबोडिया का नुकसान जीडीपी का 5.9% था और तीसरे नंबर पर लाओस रहा, जिसका साल का नुकसान जीडीपी के मुकाबले 5.8 फीसदी रहा। 

एशिया में बाढ़ और तूफानों की वजह से घर छोड़ने पर मजबूर हुए लोग 
जलवायु परिवर्तन की वजह से एशिया में बड़ी संख्या में लोगों के जनजीवन पर असर पड़ा। बढ़ी गर्मी और आद्रर्ता के चलते पूरे महाद्वीप में लोगों के बाहर निकलकर काम के घंटे कम हुए। इससे अर्थव्यवस्थाओं को अरबों डॉलर का घाटा हुआ। इसके अलावा बाढ़, तूफान और सूखे की स्थितियों ने भी पूरे एशिया पर असर डाला है। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में बाढ़ और तूफानों की वजह से करीब 5 करोड़ लोग प्रभावित हुए। इन स्थितियों की वजह से 5 हजार से ज्यादा लोगों की जानें गईं। हालांकि, यह बीते दो दशकों के सालाना 15.8 करोड़ प्रभावित लोग और 15 हजार 500 मौतों के औसत से कम रहा। यानी जलवायु परिवर्तन को लेकर एशिया के देशों को जारी की गई चेतावनी कुछ हद तक सफल भी रही। 

यूएन के मुताबिक ग्लेशियरों का खत्म होना अब तेज हो रहा है। अगर यही रफ्तार बरकरार रही, तो 2050 तक ग्लेशियर 20 से 40 फीसदी तक कम खत्म हो जाएंगे और इससे क्षेत्र में 75 करोड़ लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा असर समुद्र के बढ़े जलस्तर, बरसात की अवधि और भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी घटनाओं पर पड़ेगा। 

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