15 अगस्त है बांग्लादेश के लिए काला दिन !

15 अगस्त भारतीयों के लिए हर्ष-उल्लास का दिन है लेकिन बांग्लादेशवासियों के लिए नहीं। कारण यह कि 15 अगस्त, 1975 को बांग्लादेश के जन्मदाता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की पाकिस्तान समर्थक सेना के कुछ अधिकारियों ने सपरिवार निर्मम हत्या कर दी थी।

वे सेना का टैंक लेकर आये और राष्ट्रपति भवन में घुस कर अधाधुं‌ध गोली वर्षा कर बंगबंधु, उनकी पत्नी बेगम फजिलातुन्नेसा, बेटों- शेख कमाल, शेख जमाल व शेख रसेल सहित 24 लोगों को क्रूरता से मार डाला। बंगबंधु के परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं बचा। दोनों पुत्रियां- हसीना व रेहाना जर्मनी में थीं, इस लिए हत्यारों के जुल्म का शिकार नहीं हो पाईं।

समूची दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी शासक, जिनमें पाकिस्तान की सेना और जनरल याहया खां जैसे क्रूर अत्याचारी भी थे, पूर्वी पाकिस्तान व उसके बाशिन्दों का उत्पीड़न-दमन करते आ रहे थे। अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान के द‌मन चक्र के विरुद्ध आवाज उठाई। 28 मार्च, 1971 को मुक्तिवाहिनी का गठन कर स्वतंत्र बांग्लादेश के निर्माण की घोषणा की। 16 दिसंबर, 1971 को प्रभुता संपन्न नये देश ‘बांग्लादेश’ का उद‌य हुआ।

बांग्लादेश की आज़ादी के संघर्ष के दौरान पाकिस्तान ने क्रूरता व पैशाचिकता से दमनचक्र चलाया। याहया ने इसके लिए जनरल टिक्का खान को ढाका भेजा। टिक्का ने 8 मास के भीतर पाकिस्तानी सैनिकों व कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के रजाकारों की मदद से 30 लाख बंगालियों की हत्या कर ‘कसाई’ की पदवी हासिल की। पाकिस्तानी सैनिकों व उसके पिट्ठू रजाकारों ने 10 लाख महिलाओं का शील हरण किया। मुक्तिवाहिनी और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों के बंकरों से अपहृत बंगाली महिलाओं को मुक्त कराया। एक करोड़ बांग्लादेशी दमन-उत्पीड़न के चलते भारत के सीमावर्ती राज्यों में पलायन कर गए।

स्वाधीन बांग्लादेश के उद‌य के बाद पाकिस्तानी सेना व उस‌की कुख्यात जासूसी एजेंसी आईएसआई चैन से नहीं बैठी। बंगबंधु की हत्या कराने के बाद अपनी पिट्ठू व इस्लामिक कट्टरपंथी खालिदा जिया को 3 बार प्रधानमंत्री बनवाया। अब आरक्षण आंदोलन के बहाने सेना की मदद से शेख हसीना को सत्ता से हटा कर अपनी कठपुतली डॉ. मोहम्मद यूनुस की पाकिस्तान व आतंक परस्त सरकार बनवाई। जिन जिहादी लोगों ने 1975 में बंगबंधु की क्रूर हत्या की थी, उन्होंने ही अब ढाका में उनकी प्रतिमा को क्रेन से नष्ट कर अपनी कुत्सित मानसिकता का परिचय दिया है। कोशिश बांग्लादेश को फिर से पाकिस्तान बनाने की है। साजिश सफल होगी या नहीं, भविष्य बताएगा। हाल फिलहाल तो बांग्लादेश में कठमुल्ले ही कामयाब हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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