फार्म मशीनरी के बाद अब ट्रैक्टर घोटाला !

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने छोटे व साधनहीन किसानों के हित में बड़ा कदम उठाते हुए फार्म मशीनरी फण्ड की स्थापना की थी। इस महत्वाकांक्षी योजना के अन्तर्गत किसानों को, जिनके पास ट्रैक्टर, रिपर, थ्रेशर, कल्टीवेटर, सीड ड्रिल आदि नहीं है, ये यंत्र नाममात्र के किराये पर दिए जाने थे। योगी आदित्यनाथ के पहले ही शासन काल में छोटे किसानों के हित में यह योजना लागू कर दी गई थी किन्तु कृषि विभाग के उच्च अधिकारियों व बड़े किसानों तथा किसान हित की ठेकेदारी करने वाले नेताओं की सांठगांठ व मिली भगत से इसमें बड़ा खेल हो गया।

स्पष्टतः योजना छोटे व साधनहीन किसानों के लाभार्थ आरम्भ की गई थी किन्तु इसका लाभ उन बड़े व प्रभावशाली किसानों ने उठाया जिनके पास पहले से ही ट्रैक्टर आदि कृषि यंत्र मौजूद हैं। इस धांधली की पोल खोलते हुए मुजफ्फरनगर के सामाजिक व किसान कार्यकर्ता सुमित मलिक ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था। जिला स्तर पर जिला अधिकारी से और राज्य स्तर पर मुख्य मंत्री पोर्टल पर भी शिकायत डाली गई। समाचारपत्रों में भी इस गोलमाल की खबरें कई बार प्रमुखता से छपीं। यहां तक कि जब तत्कालीन कृषि मंत्री मुज़फ्फरनगर आये तो शिकायतकर्ता तथा मीडिया ने उनके समक्ष इस मुद्दे को उठाया किन्तु संबंधित विभागीय अधिकारियों को बचाने की नियत से कृषि मंत्री ने लीपा-पोती कर दी। साजिश की जड़ें इतनी गहरी हैं कि भाई लोगों ने जांच रिपोर्ट ही गायब करा दी।

हैरत यह है कि किसान हित की राजनीति करने वाले और खुद को किसानों का मसीहा बताने वालों ने इस प्रकरण पर मुंह बन्द कर रखा है।

किराये पर ट्रैक्टर उपलब्ध कराने के संबंध में सरकारी अधिकारियों के निकम्मेपन व उदासीनता तथा लापरवाही का एक नया मामला प्रकाश में आया है। उत्तर प्रदेश शासन ने फार्म मशीनरी फण्ड से प्रदेश की सहकारी गन्ना समितियों को 77 ट्रैक्टर उपलब्ध कराये थे जिन पर पांच करोड़ 34 लाख रुपये की लागत आई थी। गन्ना समितियों के लापरवाह अधिकारियों ने इन ट्रैक्टरों का परिवहन विभाग में समय पर रजिस्ट्रेशन नहीं कराया अतः ये 77 ट्रैक्टर किसानों के खेतों में किराये पर काम करने के बजाय गन्ना समितियों के गैराजों में बन्द हैं, जिन पर जंग लग रहा है और ट्रैक्टर धीरे-धीरे कबाड़ में तबदील हो रहे हैं। सरकार किसानों की आय दुगनी करने की योजना बनाती है निकम्मी, भ्रष्ट सरकारी मशीनरी इन योजनाओं में पलीता लगाती है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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