असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को ‘गमोसा’ (तौलिया या रूमालफ) सहित राज्य के कई पारंपरिक कपड़ों की वस्तुओं के पावरलूम उत्पादन पर सरकारी प्रतिबंध के बारे में अधिक जागरूकता पर जोर दिया, ताकि हथकरघा क्षेत्र जीवित रह सके और समृद्ध हो सके। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी से उत्पन्न स्थिति समेत विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हथकरघा उद्योग को पावरलूम उद्योग से सबसे ज्यादा खतरा है।
गुवाहाटी में महिला बुनकरों के लिए ‘स्वनिभर नारी'(Swanirbhar Nari) योजना का शुभारंभ करते हुए सीएम सरमा ने 1985 के भारत सरकार के कानून का उल्लेख किया, जो देश में कई पारंपरिक वस्त्रों के पावरलूम उत्पादन को प्रतिबंधित करता है, जिनमें गमोसा और ‘मेखेला चादर’ (महिलाओं का पारंपरिक पोशाक) समेत असम के छह वस्त्र शामिल हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिबंध के बावजूद इन वस्त्रों का पावरलूम के जरिए उत्पादन और अधिकारियों के साथ-साथ जनता द्वारा इसकी खरीद जारी है। हमने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और इससे हमारे हैंडलूम क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
नियमों का उल्लंघन करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई का आग्रह
सीएम सरमा ने हथकरघा विभाग से अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ काम करने और ऐसे दिशा-निर्देशों के बारे में जागरुकता पैदा करने और इनका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कदम उठाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि अप्रैल के मध्य में असमिया नववर्ष के मौके पर मनाए जाने वाले बिहु त्योहार के लिए सिर्फ हैंडलूम से बुने हुए गमोसा, मेखेला-चादर और ऐसी अन्य वस्त्रों की खरीद के लिए जनता के बीच अभियान शुरू किया जाए।
उन्होंने दावा किया कि अगर प्रत्येक परिवार इस बार बिहु के लिए सिर्फ दो हाथ से बुने हुए गमोसे खरीदता है, तो इससे हमारे बुनकरों को बड़ी संख्या में लाभ होगा। उन्होंने सार्वजनिक योगदान के साथ-साथ हथकरघा क्षेत्र के उत्पादों के उचित विपणन की आवश्यकता पर भी जोर दिया।