बाबू नारायण सिंह: पुण्यतिथि पर सादर नमन !

बाबू जी को सबसे पहले 1957-58 में मैंने उस समय देखा जब वे नसीरपुर स्थित फार्म हाउस से लौटते हुए मुजफ्फरनगर कच्ची सड़क स्थित आवास पर पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संपादक ‘देहात’) से मिलने के लिए अपनी गाड़ी रोकते थे। मुझे अच्छी तरह याद है वह लाल रंग की बिना छत की कार थी। पिछली सीट पर घास की गठरी या चरी की पुली रखी होती थी। सिविल लाइन स्थित अपनी कोठी के बराबर में बाबू जी ने गायों का बाड़ा बनाया हुआ था। नसीरपुर फार्म से इन्हीं गायों के लिए कार में घास लाते थे।

बाद में पिताश्री के साथ अनेक बार कचहरी स्थित बाबूजी की सीट पर उनके दर्शन किये। पिताश्री कचहरी में या तो बाबू नारायण सिंह या बाबू सर्वदमन सिंह एडवोकेट की सीट पर ही बैठते थे, यद्यदि कचहरी में उनके परिचित वकीलों की कमी नहीं थी। बाबूजी का मुकदमा लड़ने का ढंग निराला था। वे मुवक्किल से बातचीत करके जान लेते थे कि उसके मामले में सच्चाई है या वह मुकदमा जीतने के लिए गलत बयानी कर रहा है। सच्चे मुवक्किल का ही केस पकड़ते थे और जीतते थे। मुकदमे बाजी कम करने को बाबूजी ने सैकड़ों मुकदमों में तसिक्या (समझौता) कराके एक मिसाल पेश की।

पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा बाबू नगरायण सिंह की ईमानदारी, खरापन, स्पष्टवादिता और जनता के गरीब तबकों के प्रति उनके सद व्यावहार तथा किसान-मजदूरों के प्रति उनकी सेवा-भावना से बहुत प्रभावित थे। दोनों एक दूसरे के सुख-दुःख के सच्चे साथी थे।

बाबूजी का राजनीतिक जीवन एक खुली किताब की तरह था जिसमें छुपाने के लिए कुछ नहीं था। सब कुछ खुला, स्पष्ट, निष्कपट, निर्विवाद। जिसके साथ रहे, ताल ठोक के रहे। इन्दिरा गांधी हों, चौधरी चरण सिंह हों या हेमवती नन्दन बहुगुणा, सभी उनकी स्पष्टवादिता और गरीब अवाम से सदा जुड़े रहने की प्रवृत्ति से प्रभावित थे। अपने जीवन में वे सदैव संघर्षशील रहे। कांग्रेस, लोकदल, सीएफडी, किसान मजदूर पार्टी सभी जगह उनका सम्मान हुआ। जिला पंचायत के अध्यक्ष पद से लेकर उप मुख्यमंत्री पद तक बाबूजी ने आम आदमी के हितों को सम्मान दिया। ऐसे राजनेता अब दुर्लभ हैं। बाबूजी के आदर्श जीवन से जुड़ी अनेक यादे मन-मस्तिष्क में कौंधती रह‌ती हैं जो उनकी महानता, उदारता और प्यार प्रदर्शित करती हैं। इन सबको लेखनी से सामने लाने की हार्दिक इच्छा है। 19 जुलाई, 1987 को बाबू जी हम सब को छोड़ कर चले गए किन्तु अच्छाई के लिए निरन्तर संघर्ष करने का सन्देश भी दे गए।

पुण्यतिथि पर हमारा उन्हें शत-शत नमन।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’


LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here