ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आह्वान पर जब जुमा अलविदा की नमाज में वक्फ एक्ट संशोधन विधेयक के विरोध में मुसलमानों ने काली पट्टी का बहिष्कार कर दिया तो कुछ पत्रकार बहुत खुश हुए और चहकने लगे कि पर्सनल लॉ बोर्ड की काली पट्टी धरी रह गई। और अब जब ककरौली से लेकर कोलकाता तक ईदगाहों पर काली पट्टियां ही पट्टियां नजर आईं तो बेचारे ये राष्ट्रवादी पत्रकार हैरत में पड़ गए।
असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में फिलिस्तीन जिंदाबाद का नारा लगाया और प्रियंका फिलिस्तीन के झंडे वाला थैला लेकर पहुंच गई। दस-बीस नहीं, सैकड़ों स्थानों पर बच्चे, नौजवान और बूढ़े फिलिस्तीन के झंडे लेकर निकल आए।
गाजा पट्टी पर इस्राइली हमलों का विरोध करने वाले एक सुर में सड़कों पर खून बहाने और सिविल वार की धमकी देते हैं, दूसरे सुर में इस्राइल पर दबाव डालने की बात कहते हैं। भारत सरकार से हस्तक्षेप की दरकार रखने वाले किसी भी मुल्ला-मौलाना ने आज तक नहीं कहा कि सरकार बांग्लादेश के हिन्दुओं का नरसंहार और उत्पीड़न रोकने को युनुस सरकार पर दबाव डाले। काली पट्टियां और फिलिस्तीनी झंडे एक सामायिक चेतावनी हैं। यह आंख-कान खुले रखने का वक्त है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’