बॉम्बे HC ने डीयू के प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका खारिज की

मुंबई, 19 सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका पर सोमवार को आदेश पारित करेगा।

न्यायमूर्ति एन एम जामदार और न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की खंडपीठ ने अगस्त में इस याचिका पर सुनवाई आरंभ की थी।

मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बाबू पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों एवं विचारधारा का प्रचार करने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है।

बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।

एनआईए की एक विशेष अदालत ने इस साल की शुरुआत में बाबू की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। बाबू ने विशेष अदालत के आदेश को इस साल जून में उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

बाबू ने अपनी याचिका में कहा कि विशेष अदालत के इस आदेश में ‘‘त्रुटि’’ है कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक सामग्री मिली है।

एनआईए ने बाबू की जमानत याचिका का विरोध किया है। एनआईए ने कहा कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे और सरकार गिराना चाहते थे।

एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने अदालत से कहा था कि बाबू प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे और उनके लैपटॉप से अभियोजन को मिली सामग्री यह दर्शाती है कि वह इस मामले के अन्य आरोपियों के लगातार संपर्क में थे।

केंद्रीय एजेंसी के वकील ने कहा कि बाबू नक्सलवाद का प्रचार एवं विस्तार करना चाहते थे और निर्वाचित सरकार को गिराकर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के षड्यंत्र में शामिल थे।

सिंह ने अदालत से कहा कि वह और अन्य आरोपी सशस्त्र संघर्ष के जरिए ‘‘जनता सरकार’’ बनाना चाहते थे।

एएसजी ने तर्क दिया कि बाबू संगठन के अन्य सदस्यों को फोन टैपिंग से बचने का प्रशिक्षण देते थे।

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है। पुलिस का दावा है कि इसके कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव स्मारक के निकट हिंसा भड़क गई थी।

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