भारत के खिलाफ खुले समर्थन के बाद अब चीन एक और रणनीति पर काम कर रहा है। ताजा घटनाक्रम में वह पाकिस्तान और तालिबान के बीच रिश्तों को फिर से मजबूत करने की पहल कर रहा है। इस मकसद से हाल ही में बीजिंग में चीन, पाकिस्तान और तालिबान के अधिकारियों के बीच एक अहम बैठक हुई, जिसमें पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री भी शामिल हुए।
चीन की तीन प्रमुख रणनीतियाँ
- रिश्तों की बहाली: चीन चाहता है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच पहले जैसे सौहार्दपूर्ण संबंध दोबारा कायम हों। दोनों देशों के बीच तालमेल की कमी और हालिया तनाव को चीन सुलझाना चाहता है।
- व्यापारिक विस्तार: बीजिंग अफगानिस्तान तक अपने आर्थिक प्रभाव को बढ़ाना चाहता है। इसके तहत उसने पाकिस्तान में चल रहे CPEC प्रोजेक्ट को अफगानिस्तान तक ले जाने की योजना बनाई है।
- भारत की सीमित भूमिका: चीन-पाकिस्तान की योजना है कि अफगानिस्तान में भारत को केवल राजनयिक स्तर तक ही सीमित रखा जाए। 10 मई को काबुल में हुई एक बैठक में भी इस पर जोर दिया गया।
पाकिस्तान की नीतियों में चीन का दखल
चीन अब पाकिस्तान की घरेलू और विदेश नीतियों दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वह न केवल सुरक्षा बैठकों में शामिल होता है, बल्कि पाकिस्तान की रणनीतिक दिशा भी तय करने में मदद कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पाकिस्तान को नियंत्रण में रखते हुए उसे न पूरी तरह डूबने देना चाहता है, न ही पूरी तरह सशक्त होने देना।
पाकिस्तान को चीन का खुला समर्थन
चीन अब पाकिस्तान के समर्थन में पूरी तरह सामने आ चुका है। हाल ही में उसने पाकिस्तान की एकता और संप्रभुता को लेकर समर्थन जताया और हथियारों के साथ सैटेलाइट इंटेलिजेंस भी मुहैया कराई। हालांकि, भारत के एक हमले को रोकने में चीन का एयर डिफेंस सिस्टम नाकाम रहा।