उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रबल इच्छा है कि प्रदेश में कानून का शासन स्थापित हो। वे इसके लिए निरंतर प्रयत्नशील भी हैं किन्तु यह जान कर हैरानी और परेशानी होती है कि जिन वरिष्ठ आईएएस तथा आईपीएस अधिकारीयों के हाथों में कानून-व्यवस्था की बागडौर है, वे मुख्यमंत्री जी की भावना को या तो नज़रअंदाज़ कर रहे हैं अथवा लापरवाही बरत रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) संजय प्रसाद ने मीडिया को बताया कि मुख्यमंत्री स्तर पर प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के दौरान यह असलियत सामने आई कि टॉप-10 अपराधियों के विरुद्ध क़ानूनी कारवाही करने में प्रदेश के 46 जिलाधिकारियों व पुलिस अधीक्षकों ने लापरवाही का परिचय दिया। अब इन सभी अधिकारियों को टॉप-10 अपराधियों के विरुद्ध प्रभावी क़ानूनी कार्यवाही करने की हिदायत दी गयी है।
ज्ञातव्य है कि अभियोजन निर्देशालय द्वारा 25 मार्च, 2022 से लेकर 31 अक्टूबर, 2023 तक सिद्धार्थनगर में 7, मेरठ व कौशांबी में 6-6, उन्नाव, रायबरेली, अयोध्या, देवरिया में 4-4, प्रयागराज, हापुड़, लखनऊ में 3-3, बलरामपुर, कन्नौज, इटावा, गौतमबुद्धनगर, फतेहपुर, मुरादाबाद, ललितपुर, जालौन, अमेठी में 2-2 दुर्दांत अपराधियों को सजा दिलाई गई है। कुशीनगर, अम्बेडकरनगर, महराजगंज, सीतापुर, बिजनौर, बदायूं, जौनपुर, बस्ती, एटा के एक-एक अपराधी को न्यायलय ने दंडित किया है। प्रदेश के शेष जिलों में क़ानूनी पैरोकारी में सुस्ती व लापरवाही बरती गई। यह तथ्य मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक में सामने आया है अतः जिलों के उच्च अधिकारियों की लापरवाही में कोई संदेह नहीं माना जा सकता। क्यूंकि गृह विभाग के मुख्य सचिव ने जिलाधिकारियों व पुलिस अधीक्षकों को चेतावनी दी है इसलिए आशा की जाती है कि यह निष्क्रियता और लापरवाही अब समाप्त होगी और टॉप-10 के अपराधी क़ानूनी शिकंजे में आएंगे।
गोविन्द वर्मा