10 सितंबर। राष्ट्रभक्त स्वाधीनता संग्राम सेनानी , कुशल प्रशासक, आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक पं. गोविन्द बल्लभ पन्त की 136वीं जयन्ती। उनका जन्म 10 सितम्बर 1887 को अल्मोड़ा (कुमायूँ) के ग्राम खूंट में हुआ। उनके पुरखे मूल रूप से महाराष्ट्र के कोकंण प्रदेश के निवासी थे। जयदेव पन्त 11वीं शताब्दी में कोकंण से अल्मोड़ा आकर बस गए थे। गो.ब.पंत इसी वंश परम्परा से आये। नैनीताल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चेयरमैन पद से लेकर संयुक्त प्रान्त आगरा अवध में दो बार यू.पी लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य चुने गए। ब्रिटिशकालीन भारत में 17 जुलाई 1937 व 13 अप्रैल 1940 से 15 अगस्त 1947 तक यूपी के प्रीमियर (मुख्यमंत्री रहे)। संविधान सभा के सदस्य रहे। यूनाइटेड प्रोविंस के उत्तर प्रदेश बनने पर 26 जनवरी, 1954 तक उसके मुख्यमंत्री रहे। नेहरू मंत्रिमंडल में गृहमंत्री रहे। 1957 में उनकी अतुलनीय देश-समाज सेवा के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया।
पंत जी ने नैनीताल व अल्मोड़ा में वकालत शुरू की। केवल सच्चे व मुवक्किलों के मुकदमे लड़ते थे। पं. रामप्रसाद बिस्मिल तथा अन्य क्रांतिकारियों के मुकदमे लड़े। गांधी जी के आह्वान पर 1920 में वकालत छोड़ आज़ादी की जंग में कूद पड़े। पर्वतीय क्षेत्रों में मजदूरों की बेगारी प्रथा की समाप्ति के लिए कठोर संघर्ष किया। शिक्षा के प्रसार तथा उत्तर प्रदेश के विकास के लिए क्रान्तिकारी कदम उठाये। अपने मंत्रिमंडल में सहयोगी चौधरी चरण सिंह को राजस्व मंत्री बना कर जमीदारी उन्मूलन हेतु कानून की रूपरेखा बनाने का काम सौंपा। बाबू सम्पूर्णानन्द को शिक्षा मंत्री बना विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों की स्थापना का कार्य सौंपा। गांव गांव तक बिजली व सिंचाई सुविधाएं पहुंचाने का काम हाफ़िज़ मौ. इब्राहीम को सौंपा। पन्त जी ने पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की ज्योति जलाई। लोग उन्हें कुमायू केसरी नाम से संबोधित करते थे।
मुझे स्मरण है कि सन् 1961 के पूर्वार्ध में दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशनल क्लब में अ.भा. समाचारपत्र संपादक सम्मेलन की बैठक हुई थी जिसमें पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संपादक संस्थापक ‘देहात’) के साथ मैं भी उपस्थित था। कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार चपला कान्त भट्टाचार्य सम्मेलन के अध्यक्ष थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षामंत्री वी.के. कृष्ण मेनन को सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया हुआ था। नेहरू जी प्रेस (मीडिया) पर जम कर बोले किन्तु उन के चेहरे पर उदासी थी। नेहरूजी ने बताया गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त गम्भीर रूप से बीमार हैं। नेहरूजी ने अस्पताल का भी नाम लिया था, जो मुझे याद नहीं। पिताश्री पन्त जी का हाल जानने अस्पताल पहुंचे। उनसे किसी को मिलने की इजाजत नहीं थी। जिस कमरे में पन्त जी अचेत अवस्था में पड़े थे, उसमें एक छोटी ही खिड़की थी। उसी से झाँक कर उन्हें देखा जा सकता था। देखा हो कुमायूँ का शेर, भारत का रत्न आँखें बन्द किये लेटा था। पिताश्री बोझिल मन से मुजफ्फर नगर वापिस लौटे।
7 मार्च 1961 को पन्त जी नश्वर संसार से विदा ले गये। पिताश्री ने ‘देहात’ के संपादकीय में उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
पंत जी की राष्ट्र सेवाओं और उनके विराट व्यक्तित्व के विषय में विस्तार से बताया। किस प्रकार 1927 में साइमन कमीशन के विरोध में निकले जुलूस पर ब्रिटिश सरकार की पुलिस ने ताबड़तोड़ तोड़ लाठियां बरसाई। गर्दन पर पड़ी लाठियों से नसें टूट गई। गर्दन झुक गई, बोलने में दिक्कत होने लगी।
पिताश्री ने बताया कि मुख्यमंत्री के रुप में पन्त जी मुजफ्फरनगर आये तब गंगनहर के निरीक्षण भवन पर रुके थे। डाक बंगले पर मिलने पहुंचे किसानों के लिए अपनी ओर से भोजन की व्यवस्था की थी। पिताश्री ने बताया कि पन्त जी अपने भोजन व चाय का खर्च खुद उठाते थे, सरकारी खजाने से नहीं दिलाते थे।
उन्होंने बताया कि पचास के दशक में मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाअधिकारी डी.पी. सिंह की कुछ गलत कारगुजारियां ‘देहात’ में प्रकाशित कर दी थीं। वे ‘देहात’ को क्षति पहुंचाने पर उतारू थे। जिला अधिकारी की करतूतों की जानकारी देने पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा पन्त जी से मिलने लखनऊ पहुँचे। तब पन्त जी बंदरिया बाग की कोठी में रहते थे। पिताश्री को रात्रि के 11 बजे मिलने का समय आवंटित था। पन्त जी ने सारी बातें विस्तार से सुनीं। कहा- कल ए.एन.सप्रू से मिल लेना। वे सर तेज नारायण सप्रू के बेटे थे। सामान्य प्रशासन एवं गृह विभाग के सचिव थे। पिताश्री सचिवालय मिलने पहुंचे तो ए.एन.सप्रू ने कहा- ‘आप का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मुजफ्फरनगर जाइये और आराम से अखबार छापिये।’ यह सब पन्त जी की प्रशासनिक कुशलता का चमत्कार था।
ये लोग भारत माता के मुकुट के हीरे-मोती थे। आज कौन सा दिग्गज नेता पन्त जी जैसे हीरे को याद करता है। इन्हें तो एक ही परिवार के वंशजों की चरण वन्दना से फुर्सत नहीं। पन्त जी की जयन्ती पर उन्हें हमारा नमन् !
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’