एक वर्ष पूर्व मैंने भारत के महाप्रतापी, पराक्रमी और मातृभूमि की रक्षा के लिए इस्लामिक हमलावरों को धूल चटाने वाले चक्रवर्ती सम्राट मिहिर भोज की गौरव-गाथाओं के विषय में लिखा था। मैंने यह भी लिखा था कि वर्तमान परिस्थियों में आज प्रत्येक देशभक्त भारतीय के घर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा या चित्र होना चाहिए।
ऐतिहासिक तथ्यों, पुरा सामग्री, पुरातन सिक्कों व शिलालेखों तथा अन्य साक्ष्यों से पता चलता है गुर्जर प्रतिहार वंश के इस राष्ट्रभक्त शासक ने 836 ई. से. 885 ईस्वी तक लगभग 50 वर्षों तक भारतीय उपमहाद्वीप में मुल्तान से लेकर त्रिपुरा (बंगाल) तक देश की अखंडता, संप्रभुता और चतुर्दिक समृद्धि के लिए विलक्षण बुद्धि एवं शौर्य का प्रदर्शन किया।
मिहिर भोज के शासनकाल में भारत की समृद्धि-वैभव से आकर्षित हो कर अरब हमलावरों ने आक्रमण शुरू कर दिये थे। मिहिर भोज ने महसूस कर लिया था कि इस्लामिक हमलावरों का सामना पूरे देश को एकजुट होकर करना चाहिए। मिहिर भोज ने भारतवर्ष के विभिन्न राजाओं से भेंट कर उन से अरब के हमलावरों का मिलकर सामना करने का आग्रह किया। अधिकांश राजाओं ने उनके प्रस्ताव को स्वीकारा। यहां तक कि अफगानिस्तान, तिब्बत व नेपाल के शासकों ने मिहिर भोज से मित्रता निभाई। किन्तु कुछ राजाओं को विदेशी हमलावरों से कोई परेशानी महसूस नहीं हुई। दूरदृष्टा मिहिर भोज ने सोचा कि गद्दारों के चलते विदेशी हमलावरों को शिकस्त नहीं दी जा सकती। अत: मिहिर भोज ने विदेशी आक्रमणकारियों को धूल चटाने से पहले इन गद्दार शासकों को पराजित करना उचित समझा। उन्होंने इन राष्ट्र विरोधियों को पहले पराजित किया और बाद में अरब के आक्रमणकारियों- इमरान बिन मूसा, खलीफा मोहतसिमवासिक, मुतवक्कल, मुन्तशिर, मोहतमिदादी को पराजित किया।
आज भी भारत की पुरातन संस्कृति व अखंडता को खतरा है। मिहिर भोज के शासनकाल के अमोघवर्ष व नारायणलाल जैसे गद्दार आज भी मौजूद हैं। बिहार के फुलवारीशरीफ से 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बनाने की घोषणा होती है, पीएफआई सारे देश में जाल बिछाता है और सीमा पर हमारे कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष तथा डीएसपी हुमायूं भट्ट शहीद होते हैं। दूसरी ओर देश के गद्दार मिहिर भोज जैसे महान मातृभूमि रक्षक पर जातिवाद का ठप्पा लगाकर राष्ट्र की एकता को छिन्नभिन्न करने पर आमादा हैं। क्या मिहिर भोज गुज्जर या राजपूत जातियों के ही पूजनीय थे ?
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’
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