इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने आदेश दिया है कि अधिवक्ता या अदालतकर्मी की मृत्यु पर न्यायिक कार्य रोक कर हड़ताल करने को अदालत की अवमानना माना जाएगा। हाईकोर्ट ने उत्तरप्रदेश के सभी जिला जजों को निर्देश दिया कि वकीलों की हड़ताल की सूचना वे हाईकोर्ट के महानिबंधक को दें।
उ.प्र. बार काउंसिल के वकील आर.के. ओझा ने हाईकोर्ट में दलील दी है कि शोक प्रकट करने को मजबूरन हड़ताल की जाती है। इस पर पीठ ने कहा- ‘आप बांह पर काली पट्टी बांधकर शोक प्रकट कर सकते हैं।’
इस आदेश के अलावा वकीलों की हड़ताल के संबंध में एक महत्वपूर्ण विचार सामने आया। प्रयागराज में यूपी बार एसोसिएशन के नये प्रशासनिक भवन के लोकार्पण समारोह में हाईकोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि हड़ताल न केवल न्याय प्रक्रिया को लम्बा खींचती है, बल्कि इससे समाज का भी नुकसान होता है। ऐसे में वकीलों को छोटी-छोटी बातों व मुद्दों पर हड़ताल करने से बचना चाहिए। अधिवक्तागण समझें कि न्याय दिलाने में उनकी सबसे अहम भूमिका है। जस्टिस विक्रम नाथ ने कहाः
”अदालत सूर्य है वो न्याय का जिससे उजाला है,
मुसीबत जब पड़ी है मुल्क पर इसने संभाला है,
हमारे काम को देखो, हमारे वस्त्र न देखो,
हमारी आत्मा उजली है केवल वस्त्र काला है।”
वादकारी अधिवक्ताओं की रोज-रोज की हड़तालों से आजिज आ चुके हैं। पश्चिम में हाईकोर्ट की बेंच को लेकर हर शनिवार को अदालतें बंद रहती हैं। इसके अतिरिक्त बिना पूर्व सूचना के अधिवक्ता न्यायिक कार्यों से विरक्त हो जाते है। वादकारियों को इस प्रकार की हड़तालों से आर्थिक व मानसिक क्षति पहुँचती है। आशा की जानी चाहिए कि अधिवक्तागण माननीय उच्च न्यायलय की भावना को समझेंगे।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’