कर्नाटक में हिजाब की वापसी !

देश के मुस्लिम समाज को मुख्य राष्ट्रीयधारा से अलग रखने के राजनीतिक दलों व भारत में जिन्नावाद को जारी रखने वाले नेताओं के पास अनेक हथकंडे हैं, जिनका वे समय-समय पर इस्तेमाल कर अपने वोट बैंक को मज़बूत करते हैं।

कर्नाटक में राजनीतिक स्वार्थ के लिए कांग्रेस ने ‘हिजाब’ के इस्तेमाल करने या न करने को मुद्दा बनाया था और हैदराबादी भाईजान ने हिजाब प्रकरण को खूब हवा दी किन्तु कर्नाटक हाईकोर्ट ने कट्टरपंथियों की साजिशों को नाकाम कर दिया था।

कर्नाटक की सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस नेताओं की आत्मा हिजाब को लेकर बेचैन थी, सो इस पर लगी पाबंदी व स्कूली ड्रेस कोड का नियम कर्नाटक में रद्द कर दिया गया है।
खुद मुस्लिम समाज की महिलायें मानती हैं कि यह नारी को पिछड़ा रखने और पुरुष समाज की सर्वोच्चता बनायें रखने का आधुनिक तरीका है। इस्लामिक देशों की महिलाएं हिजाब को स्वीकार नहीं कर रही हैं और कट्टरवादी सोच के विरुद्ध विद्रोह पर आमादा हैं। यही कारण है कि जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में लौटे तो उन्होंने औरतों की आज़ादी व स्वायत्तता खत्म करने के हथियार के रूप में हिजाब को इस्तेमाल किया और 8 दिसंबर 2022 को महिलाओं को घरों में कैदी बनाये रखने का आदेश जारी कर दिया।

खुद को मुस्लिम देशों का मुख्या बताने वाले ईरान में भी हिजाब का इस्तेमाल दमनकारी हथियार के रूप में हो रहा है, जिसका प्रबल विरोध ईरान की महिलाओं और लिखे पढे युवा समाज ने किया है। ईरान की कठमुल्ला सरकार इस हिजाब विरोधी आन्दोलन को बड़ी क्रूरता व पैशाचिकता से दबाने में लगी है, यह पूरी दुनिया जानती है।

17 सितम्बर, 2022 को हिजाब का विरोध करने पर ईरानी महिला महसा अमीनी को कट्टरपंथी सरकार की पुलिस ने क्रूरतापूर्वक पीट-पीट कर मार डाला। उसके पिता को बेटी की लाश भी देखने न दी।

अमीनी की हत्या के बाद समस्त ईरान में कट्टरपंथी इस्लामी शासन के विरुद्ध आक्रोश उमड़ पड़ा। जगह-जगह धार्मिक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के होर्डिंग तोड़े व फूंके जाने लगे। हजारों ईरानी औरतें अमीनी के समर्थन और हिज़ाब के विरोध में सड़कों पर उतर आईं। अभिनेत्री फतेमेह आर्य ने सामने आकर कट्टरपंथी शासन का विरोध किया। नीका शकरमी और सरीना की सेना द्वारा हत्या के बाद पूरे ईरान में उनके नाम के हैशटैग बने। छात्राओं ने कॉलेजों के ब्लैक बोर्ड पर हिजाब व कट्टरता के विरुद्ध इबारतें लिखीं। तमाम ईरान में इमारतों व स्कूल-कॉलेजों की दीवारों पर हिजाब की अनिवार्यता के विरुद्ध नारे लिखे गए।

हिजाब की पाबन्दी का प्रबल विरोध करने वाली महिलाओं व पुरुषों पर कट्टरपंथियों का क्रूर दमनचक्र व खूनी पंजा चला। हिजाब विरोधी आन्दोलन में 800 से अधिक महिलाओं की कट्टरपंथियों ने हत्या कर दी और 20 हजार स्त्री-पुरुषों को जेलों में ठूस दिया गया। खुद को शान्तिप्रिय व भाईचारे की दुहाई देने वाले कट्टरपंथियों का चेहरा एक बार फिर दुनिया भर के सामने आ गया।

अफगानिस्तान व ईरान जैसे इस्लामी देशों में मुस्लिम महिलाएं हिजाब का विरोध कर रही हैं किन्तु वोट बैंक के लिए कांग्रेस व सेक्युलरवादी नेता हिजाब का राजनीतिक दुरुपयोग करने में जुटे हैं। हर्ष व सन्तोष की बात यह है कि मुस्लिम समाज की बेटियां दकियानूसी विचारों को छोड़कर प्रशासन, सेना, पुलिस, न्यायपालिका व तकनीकी संस्थाओं में आगे बढ़ रही हैं। पर्दे का सीधा मतलब शर्मोहया से है। इसे मज़हबी ड्रेस कोड नहीं माना जा सकता। हमारी बेटियां शर्म और हया का मुस्तैदी से पालन करें लेकिन वे पर्दे के नाम पर क़ैद में नहीं रह सकतीं। शायर ने ठीक ही कहा है:

बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को,
हिन्दू का न ख़तरा न मुसलमान का डर है!

जो लोग हिजाब के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उनके लिए भी शायर ने कहा है:

हिजाब-ए-ज़ात से बाहर कहाँ अभी हम लोग,
अभी ये कौन बताए कि आदमी क्या है!

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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