सास हो तो ऐसी…32 साल की बीमार बहू का देखा दर्द, किडनी देकर बचा ली जान

सास-बहू के रिश्ते को लेकर अक्सर कहा जाता है कि इनमें नोकझोंक बनी रहती है, लेकिन यूपी के गाजियाबाद के यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशांबी में एक ऐसा वाकया सामने आया जो आपकी सोच को बदल देगा. मेरठ की 60 वर्षीय पुष्पा देवी ने इस धारणा को पूरी तरह बदल दिया.

पुष्पा देवी ने अपनी 32 वर्षीय बहू रीना को किडनी दान कर यह साबित कर दिया कि यह रिश्ता सिर्फ तानों और तकरार तक सीमित नहीं है, बल्कि रिश्ते मे त्याग और स्नेह का भी रिश्ता होता है.

दो बच्चों की मां हैं रीना

मेरठ के वालिदपुर गांव की रहने वाली रीना दो बच्चों की मां हैं. मई 2024 से वह किडनी डिजीज (ESRD) से जूझ रही थीं और डायलिसिस पर थीं. रीना की व्यस्त दिनचर्या और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण उनकी बीमारी का पता परिवार वालों को देरी से पता चला.

ट्रांसप्लांट की बढ़ गई थी मुश्किलें

रीना ने अपनी इस बिमारी के लिए यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की मेरठ ओपीडी में डॉक्टर प्रजीत मजूमदार और डॉक्टर इंद्रजीत जी. मोमिन से परामर्श किया. ऐसे में डॉक्टर्स ने उन्हेंकिडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय बताया, तो परिवार में कोई भी डोनर उससे मैच नहीं हुआ. माता-पिता अयोग्य थे, पति और भाई का ब्लड ग्रुप भी नहीं मिला. रीना को पहले कई बार रक्त आधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) किया जा चुका था और उन्हें हेपेटाइटिस सी भी हो गया था, जिससे ट्रांसप्लांट की मुश्किलें और बढ़ गई थी.

सास ने उठाया कदम

जानकारी के मुताबिक रीना को बचाने के लिए जब कोई उपाय नहीं बचा, तो उनकी सास पुष्पा देवी आगे आईं और अपनी किडनी दान करने का फैसला किया. हालांकि यह निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन बहू को बचाने के लिए उन्होंने अपनी सेहत की परवाह किए बिना यह बड़ा कदम उठाया.

दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं स्वस्थ

यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशांबी में डॉक्टर प्रजीत मजूमदार, डॉक्टर आईजी मोमिन (नेफ्रोलॉजी टीम) और डॉक्टर वैभव सक्सेना, डॉक्टर निरेन राव व डॉक्टर कुलदीप अग्रवाल (किडनी ट्रांसप्लांट टीम) की देखरेख में यह ऑपरेशन सफलतापूर्वक किया गया. वहीं अब सास और बहू दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं.

समाज के लिए प्रेरणा

भारत में हर साल करीब 2,20,000 मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 7,500 ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं. महिलाओं के लिए यह चुनौती और भी बड़ी होती है, क्योंकि 70% डोनर महिलाएं होती हैं, जबकि ज्यादातर किडनी पाने वाले पुरुष होते हैं. ऐसे में पुष्पा देवी का यह कदम समाज के लिए एक प्रेरणा है.

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