क्या डॉ. अखिलेश मोहन सी.एम.ओ.पद के योग्य हैं ?


सर्व प्रथम हम मेरठ की मीडिया, विशेषकर ‘अमर उजाला’ के सरधना के संवाद‌दाता और उसके संपाद‌क नितिन कुमार की सराहना करेंगे, जिन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) में तैनात स्वास्थ कर्मियों की संवेदनहीनता, कर्तव्यहीनता को उजागर कर पत्रकारिता धर्म का पालन किया और सामाजिक कुसंगतियों-अनाचारों तथा सिस्टम की हृदयहीनता का प‌र्दाफाश किया।

दो बच्चों का पिता, एक कामांध दरिंदा 13 वर्ष की अबोध असहाय लड़‌की को डरा धमका के वीडियो वायरल करने की धमकी देकर, आठ मास तक उसका शोषण करता रहा। लड़‌की गर्भवती हो गई और उसकी तबियत बिगड़ी तो घर वालों को उसके गर्भवती होने का पता चला। परिजन लड़‌की को लेकर सरधना सीएचसी पहुंचे किन्तु बालिका की गम्भीर स्थिति तथा उसकी चिल्लाहट व करुण

क्रंदन की तनिक भी परवाह न करते हुए सीएचसी के स्वास्थ कर्मियों ने परिजनों को यह कह कर टरका दिया कि यह तो पुलिस केस है, पहले पुलिस में रपट लिखाओ। निर्दयी व कर्तव्यहीन स्वास्थ कर्मियों का दिल नहीं पसीजा और बेबस असहाय परिजनों के समक्ष अस्पताल परिसर में खुले में लड़‌की का प्रसव हुआ। सात मास के मृत बच्चे के प्रसव के बाद‌ भी लड़‌की बाहर पड़ी रही।

इसी बीच सरधना कोतवाली प्रभारी प्रताप सिंह को सूचना मिली तो वे सरधना सीएचसी पहुंचे और लड़की को बाहर बैंच पर कराहते व खून से लथपथ पाया। उन्होंने स्वास्थ कर्मियों को डपटते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे मामलों में स्वास्थ कर्मियों के तत्काल सक्रिय होने की अपेक्षा करती है। बाद में लड़की की गम्भीर स्थिति को देखते हुए उसे जिला अस्पताल भेज दिया गया।

सरधना की घटना लापरवाह, निकम्मे तंत्र (सिस्टम) की पोल खोलती है। एक ओर तेरह वर्ष की अबोध बालिका को हवस का शिकार बनाने वाला नर पिशाच है तो दूसरी ओर सरधना की सीएचसी का निकम्मा स्टाफ, वहीं सरधना के कोतवाली प्रभारी प्रताप सिंह हैं जिन्होंने कर्तव्य परायणता दिखाते हुए बलात्कारी सुभाष को तुरन्त गिरफ्तार किया और लापरवाह अस्पताल कर्मियों को नसीहत भी दी। एक एस. पी. देहातर (मेरठ) कमलेश्वर बहादुर हैं जो कहते हैं कि लड़‌की की स्थिति गंभीर है, बयान देने की हालत में नहीं है।

किन्तु इस समस्त प्रकरण में सबसे गैर जिम्मेदाराना रवैया मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अखिलेश मोहन का है। वे दफ्तर में बैठे बयान दे रहे है कि सीएचसी कर्मियों ने कोई लापरवाही नहीं बरती, बच्चा खुले में नहीं बल्कि लेबर रूम में हुआ है। सीएमओ से पूछा जा सकता है कि क्या आपने सरधना सीएचसी जाने का कष्ट उठाना गवारा किया था ? क्या आप पीड़िता व उसके परिजनों से मिले और क्या आपने मौके पर पहुंचे सरधना कोतवाली प्रभारी से भी कोई जानकारी हासिल की थी?

प्रथम दृष्टतया यह कहा जा सकता है कि सीएमओ डॉ. अखिलेश मोहन लापरवाह व कर्तव्यहीन सीएचसी कर्मचारियों को बचाने के लिए लीपापोती कर रहे हैं, जबकि उन्हें एक उत्तरदायी अधिकारी के नाते सत्य का अनुगमन कर नाअहल कर्मचारियों को दंडित कराना था। एक अति गंभीर घटना पर सरासर झूठ बोलना पद की गरिमा के विपरीत है।

हम प्रदेश के उप मुख्यमंत्री, बृजेश पाठक जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, का ध्यान सीएचसी सरधना की घटना और सीएमओ डॉ. अखिलेश की लीपापोती व झूठे बयान की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। श्री पाठक कभी स्वास्थ विभाग और सरकारी अस्पतालों की खूब पोल खोलते थे। मुख्यमंत्री योगी जी ने उन्हें स्वास्थ व चिकित्सा विभाग की जिम्मेदारी दे दी। शुरू-शुरू में खूब छापे मारे। लाखों रुप‌ये कीमत की एक्सपायरी डेट की दवाइयाँ बरामद कीं लेकिन अब सरधना सीएचसी जैसे मामले हो रहे हैं। पाठक जी कोई मुगालता न पालें, तमान उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की सरधना जैसी स्थिति है। जो हालत पाठक जी के स्वास्थ मंत्री बनने से पहले थी, वही स्थिति आज भी है। डॉ. अखिलेश मोहन जैसे सीएमओ एसी दफ्तर में बैठकर झूठी-सच्ची रिपोर्ट गढ़ देते हैं।

फिलहाल तो सीएचसी सरधना का मामला है। क्या माननीय उप मुख्यमंत्री जी इस विषय में कोई सार्थक पहल करेंगे? डॉ. अखिलेश को तो मेरठ से तुरन्त हटाने की जरूरत है, ताकि जांच ईमानदारी व निष्पक्षता से हो सके।

गोविन्द वर्मा

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