रेल रोको आंदोलन किसान हित या राजनीतिक हथकंडा ?

किसानों के कथित हित में शंभू में 17 अप्रैल से रेलवे लाइनों को घेर कर बैठे सरवन सिंह पंधेर व जगजीत सिंह डल्लेवाल के समर्थकों ने अचानक अपना बोरिया-बिस्तर वहां से उठा लिया है। कहने के लिए तो रेल रोको किसानों को सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने को कानून बन‌वाने के लिए था किन्तु रेल यातायात ठप रखने का मकसद नवदीप सिंह जलबेड़ा तथा उन लोगों के ऊपर दायर मुकद‌मों को खत्म कराना है जिन्होंने शंभू और खनौरी बार्डर पर जेसीबी, ट्रैक्टर व लाठी-डंडे, भाले लेकर उत्पात मचाया था। पंधेर व डल्लेवाल ने कहा है कि भले ही हम रेलवे लाइनों से कब्जा हटा रहे हैं किन्तु हम आन्दोलन जारी रखेंगे। 23 व 24 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनावी दौरे के समय पंजाब आने पर उनका घेराव करके उनसे सीधे सवाल किये जाएंगे।

अब पूरी तरह सिद्ध हो चुका है कि किसान आन्दोलन के नाम पर देश में अराजकता का माहौल बना कर राजनीतिक अस्थिरता पैदा करना मकसद है। पूरी दुनिया ने देखा कि 13 महीनों तक दिल्ली को बंधक बनाये जाने के समय क्या-क्या हुआ। लालकिले का बवाल, पुलिसजनों को उठा कर 20 फिट खाइयों में नीचे फेंका जाना, आईटीओ चौराहे का हंगामा, राष्ट्रध्वज का अपमान, भिंडरावाले के फोटो वाले पोस्टर, बार्डर पर लड़की से बलात्कार, युवक को तलवारों से काट कर लटकाने के भयानक दृश्य। कपड़े धोने की मशीनें, पिज्जा-चाऊमीन और रंगीन बोतलों के स्टाल, नये कंबलों, तौलियों, जूतों का विवरण। लम्बी-लम्बी लक्जरी कारें। सब देश ने देखा है। सत्तारूढ़ दल ने अपना सिंहासन हिलने का खतरा देखा होगा लेकिन छोटी-छोटी बातों पर स्वतः संज्ञान लेने वाली सुप्रीम कोर्ट को लकवा क्यूं मार गया था?

शंभू बार्डर पर जो उत्पात मचा, उसे भी टीवी के माध्यम से देश ने देखा। ऐसा लगता था कि खुद ‌को किसान बताने वाले लोग ऐसी जंगी तैयारी से बार्डर पर आये थे मानो यह पंजाब-हरियाणा का बार्डर नहीं बल्कि भारत-पाकिस्तान की सरहद है। हरियाणा व पंजाब हाईकोर्ट ने अलबत्ता फटकार लगाई कि जिन बच्चों के पास स्कूल के बस्ते होने चाहिएं थे, उन्हें आन्दोलनकारियों ने हथियार पकड़ा दिए।

पंजाब में रेल की पटरियों को जाम करने का कोई औचित्य नहीं था। पंधेर और डल्लेवाल ने यह हथकंडा करके करोड़ों रेल यात्रियों को परेशान किया और रेलवे को करोड़ों रुपये की जानबूझ कर क्षति पहुंचाई। रेलवे व्यवस्था को ठप करना एक राष्ट्रीय अपराध है। पंधेर और डल्लेवाल यदि यह हरकत रूस, चीन या उत्तर कोरिया में करते तो उन्हें अपने किये की क्या सजा मिलती?

पंधेर और डल्लेवाल के रेल रोको आन्दोलन से सहारनपुर-मुजफ्फरनगर-मेरठ तक के लाखों रेल यात्री रोज़ परेशान रहे। 35 दिनों के रेल ठप करो आन्दोलन से देश को अपार क्षति पहुंची है। रेल ठप करो आन्दोलन में 5,500 ट्रेनें प्रभावित हुईं। 2 हजार ट्रेनें रद्द की गईं। 3000 ट्रेनें डायवर्ट की गईं। एक हजार ट्रेनों को शॉर्ट टर्मिनेट कर चलाया गया। हर रोज़ दो लाख रेल यात्रियों को टिकट रिफंड दिया गया। इस कथित किसान आंदोलन से 2220 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति पहुंची और पंधेर तथा डल्लेवाल रेल जाम करो का तमाशा करने के बाद हाथ झाड़ कर खड़े हो गए। अब बहुमत द्वारा दो-दो बार चुने गए प्रधानमंत्री का घेराव करने की धमकी दे रहे हैं। खुद को किसान नेता घोषित करने वाले ये लोग आखिर किसके इशारे पर देश को क्षति पहुंचाने और कानून व्यवस्था को भंग कर अराजकता फैलाने का खेल खेल रहे हैं?

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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