नेपाल में हाल के दिनों में बढ़े तनाव और युवाओं के प्रदर्शन ने राजनीतिक हालात को हिला दिया। इतना दबाव बन गया कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफे के बाद अटकलें लगाई जाने लगीं कि ओली दुबई या चीन चले गए हैं।
हालांकि, अब खुद ओली ने इस पर विराम लगाया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे न तो दुबई गए हैं और न ही चीन, बल्कि फिलहाल शिवपुरी में नेपाली सेना की सुरक्षा में हैं। उन्होंने फेसबुक पर जनता और युवाओं के लिए एक खुला पत्र साझा किया। पत्र में उन्होंने कहा कि वे सेना के जवानों के बीच सुरक्षित हैं और बच्चों और युवाओं की मासूमियत और हंसी को याद कर रहे हैं।
ओली ने मौजूदा आंदोलन को युवाओं की वास्तविक आवाज़ नहीं बल्कि एक साजिश बताया। उनके अनुसार सरकारी दफ्तरों में आगजनी और जेल से कैदियों की रिहाई जैसी घटनाएँ किसी सामान्य प्रदर्शन का हिस्सा नहीं हो सकती। उन्होंने चेताया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, जिसे संघर्ष और बलिदान से स्थापित किया गया।
पत्र में ओली ने अपनी निजी पीड़ा का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि सत्ता संघर्ष के दौरान वे अपने बच्चों से दूर रहे, लेकिन पिता बनने की इच्छा कभी खत्म नहीं हुई। उन्होंने अपने कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि उनका जिद्दी स्वभाव उन्हें अडिग बनाए रखता है। उन्होंने सोशल मीडिया नियमों, लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा घोषित करने और भगवान श्रीराम के जन्मस्थान को नेपाल बताने जैसे फैसलों का उदाहरण दिया। उन्होंने लिखा कि उनके लिए पद और प्रतिष्ठा से अधिक महत्वपूर्ण देश की व्यवस्था है, जो लोगों को बोलने, चलने और सवाल करने का अधिकार देती है।