दुनियाभर में जमीन तेजी से बंजर हो रही

इन दिनों क्लाइमेट चेंज का मुद्दा पूरी दुनिया में उभर कर वैश्विक मुद्दा बन गया है. इस पर लगातार वैज्ञानिक स्टडी कर रहे हैं और जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कैसे इससे दुनिया को बचाया जा सकता है. इसी बीच यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट सामने आई है. इसमें खुलासा हुआ कि इस क्लाइमेट चेंज के कारण पृथ्वी की तीन-चौथाई भूमि स्थायी रूप से सूख गई है. साथ ही रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई, कि अगर ऐसे ही रुझान जारी रहा तो 2100 तक पांच अरब लोग सूखी धरती पर यानी बिना पानी की धरती पर रहने को मजबूर हो जाएंगे.

इन बदलते हालातों का प्रभाव पृथ्वी के इको सिस्टम, जल संसाधनों और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर भी गंभीर अरस पड़ेगा. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 30 सालों में पृथ्वी की सूखी भूमि का विस्तार भारत में भी बड़े क्षेत्र में हुआ है. अंटार्कटिका को छोड़कर, यह अब पृथ्वी की कुल भूमि का 40.6% हिस्सा कवर करती है, सूखी भूमि का इस तरह से लगातार बढ़ना जमीन के बंजर होने के खतरे का एक बड़ा संकेत माना जा रहा है.

अरबों लोगों पर पड़ेगा असर

यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) के अनुसार, सूखती जमीन के कारण मिट्टी खराब हो रही है, जल स्रोत सूख रहे हैं, और पारिस्थितिक तंत्र ढहने की कगार पर है. रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो सदी के अंत तक पांच अरब लोग इन क्षेत्रों में रहने को मजबूर होंगे.

यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने इस रिपोर्ट को एक ‘अस्तित्वगत खतरे’ के रूप में वर्णित किया है. उन्होंने कहा कि जब किसी क्षेत्र का मौसम सूखा हो जाता है, तो वह अपनी पुरानी स्थिति में वापस नहीं लौटता. इस बदलाव के कारण दुनिया के बड़े हिस्से में जीवन के तरीके स्थायी रूप से बदल रहे हैं.

बढ़ता तापमान और घटती नमी

क्लाइमेट चेंज के कारण बढ़ते तापमान के चलते पृथ्वी से पानी तेजी से वाष्पीकृत हो रहा है. इससे वातावरण अधिक नमी सोखने में सक्षम हो गया है. इसका परिणाम यह हुआ है कि हरे-भरे जंगल सूखे घास के मैदानों में बदल रहे हैं और कृषि के लिए आवश्यक नमी तेजी से कम हो रही है.

रिपोर्ट के अनुसार, तीन अरब लोग और वैश्विक खाद्य उत्पादन का आधा हिस्सा जल संसाधनों पर ‘अभूतपूर्व दबाव’ का सामना कर रहे हैं. भूमि के विनाशकारी उपयोग और जल संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण यह संकट और गहरा गया है. इससे जलीय प्रणाली और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.

दुनिया में आ जाएंगी ये आफत

रिपोर्ट बताती है कि सूखापन अब 40% कृषि भूमि और 2.3 अरब लोगों को प्रभावित कर रहा है. इसके कारण जंगलों में आग की तीव्रता, कृषि प्रणाली का पतन और बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। यूरोप, पश्चिमी अमेरिका, ब्राजील, पूर्वी एशिया और मध्य अफ्रीका जैसे क्षेत्र विशेष रूप से इस संकट से प्रभावित हैं.

रिपोर्ट के लेखक मानते हैं कि यदि कार्रवाई की जाए तो भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है. वे कार्बन उत्सर्जन में कटौती, भूमि और जल के बेहतर उपयोग, और वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करने की सिफारिश करते हैं. यूएनसीसीडी के प्रमुख वैज्ञानिक बैरन ऑर के अनुसार, ‘चुनौती का सामना करने के लिए हमारे पास साधन हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे पास इसे करने की इच्छाशक्ति है.’

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