लोकसभा अध्यक्ष पदः गुर्राता विपक्ष अचानक क्यों बना भीगी बिल्ली ?

संसदीय इतिहास में राहुल गांधी ने 48 वर्षों में पहली बार ऐसी स्थिति बनाई कि लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव बहुमत के आधार पर हो सके। एन.डी.ए की ओर से ओम बिरला का नाम आगे होते ही राहुल ने के. सुरेश का नाम पेश कर ‌दिया। इसी के साथ कांग्रेस का ईको सिस्टम चालू हो गया। कल सवेरे 10.30 बजे तक सारे भोंपू एक ही राग अलापते रहे कि राहुल ने ममता से बात कर ली है और टी.एम.सी. सांसदों का समर्थन हासिल कर लिया है। स्पीकर के चुनाव में इंडी गठबंधन एन.डी.ए का तख्ता पलट देगा। यह भी हल्ला मचा कि के. सुरेश चूंकि द‌लित हैं, इस लिए एन.डी.ए के दलित सांसदों के वोट भी इंडी गठबंधन को ही मिलेंगे। राहुल ने 3 दिन पूर्व एक विदेशी समाचारपत्र को इंटरव्यू में यह कह कर माहौल बनाने की कोशिश की कि एन.डी.ए के कुछ घटक दल मेरे संपर्क में हैं।

लेकिन 11 बजे राहुल गांधी द्वारा फुलाया हुआ गुब्बारा फूट गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आदि कई सांसदों ने अध्यक्ष पद के लिए ओम बिरला का नाम प्रस्तावित किया तो समर्थन की झड़ी लग गई।

विपक्ष ने के. सुरेश का नाम प्रस्तावित किया किन्तु मत विभाजन या वोट डाल कर निर्णय करने की मांग नहीं की। तब प्रोटेम स्पीकर ने ध्वनि मत से ओम बिरला को अध्यक्ष निर्वाचित घोषित कर दिया ।

इंडी गठबंधन, खासकर राहुल गांधी ने स्पष्ट तौर पर महसूस कर लिया था कि उनके गुट के ही कुछ सांसद के. सुरेश को वोट नहीं देंगे। इंडी गठबंधन की सदस्य संख्या घटते देख राहुल ने मतदान नहीं कराया क्यूंकि इंडी में फूट की पोल खुल जाती।

हाँ, राहुल, अखिलेश यादव, सुदीप बंदोपाध्याय, सौगतराय आदि विपक्षी सांसदों ने ओम बिरला पर पक्षपात करने और सरकार पर विपक्ष की आवाज द‌बाने का आरोप मढ़ दिया। राहुल व सौगतराय आदि गारंटी चाहते थे कि ओम बिरला भविष्य में विपक्षी सांसदों का निष्कासन न करें।

क्या इन सदस्यों को संसद को वह पिछली कार्यवाही के शॉट्स नहीं दिखाये जाने चाहिएं जिनमें वे सदन में गुल गपाड़ा मचा रहे हैं, कागज की गेंदे आसन की ओर उछाली जा रही हैं। रूलबुक उठा कर फेंकी जा रही हैं और महिला सुरक्षाकर्मियों तक से अभद्रता करके डेस्क पर चढ़ कर ठुमके लगाए जा रहे हैं। क्या विपक्ष अध्यक्ष से इसी प्रकार के हंगामे को प्रश्रय देने की गारंटी चाहता है। क्या भविष्य में सदन में पहले जैसे ही हंगामा बरपा होता रहेगा ?

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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