झण्डा ऊंचा रहे हमारा !

तारीख मुझे अच्छी तरह‌ याद है- 8 नवम्बर। सत्तर का दशक था, सन्‌ याद नहीं। गूजर गांधी के नाम से मशहूर, किसान- मजदूरों के लोकप्रिय नेता रामचन्द्र विकल जी का जन्मदिवस समारोह कॉन्स्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में आयोजित था। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सदर-ए-रियासत, केन्द्रीय मंत्री, संस्कृत भाषा के उद्भट विद्वान डॉ. कर्ण सिंह कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे।

मंच पर आसीन विकल जी ने माइक पर आकर घोषणा की – “हमारा सौभाग्य है कि हमारे बीच में श्री श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ उपस्थित हैं, जिनके झण्डा गान ने करोड़ों भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनुप्राणित किया था। आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष माननीय कर्ण सिंह जी से अनुरोध है कि वे पार्षद जी को सम्मानित करें।”

विकल जी के अनुरोध के बाद कर्ण सिंह जी ने माला पहिना कर और अंगवस्त्र भेंट कर पार्षद जी का अभिनन्दन किया। वृद्धावस्था के बावजूद पार्षद जी ने “झण्डा ऊंचा रहे हमारा” ओजपूर्ण स्वर में सुनाया।

बाल्यकाल और किशोरवय में स्कूलों की प्रार्थना सभा में हमने यह गीत सैकड़ों-हजारों बार गाया। तब यह पता नहीं था कि इस प्रेरणादायक देशभक्तिपूर्ण गीत के रचयिता पार्षद जी थे। श्रद्धेय विकल जी की कृपा से मैं श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ जी के साक्षात दर्शन कर कृतार्थ हो गया।

श्रेष्ठ अध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी, पार्षद जी का जन्म 16 सितम्बर, 1893 में कानपुर के कस्बे नरवल में हुआ। साहित्यकार प्रताप नारायण मिश्र एवं पत्रकार शिरोमणि गणेशशंकर विद्यार्थी उनके प्रेरक-मार्गदर्शक थे। सन् 1916 से 1947 तक स्वाधीनता संग्राम आंदोलन में सक्रिय रहे। 8 बार जेल गए। 6 वर्ष की सजा काटी। सन् 1952 में दिल्ली के लालकिले की प्राचीर से ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ गीत सुनाया। वे मानस मर्मज्ञ थे, श्रीराम कथा एवं रामचरितमानस कंठस्थ थी। राष्ट्रपति राजेन्द्र‌ बाबू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में निमंत्रित कर पूरी रामकथा सुनी थी। सन् 1973 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से नवाजा गया। 10 अगस्त 1977 को वे संसार से विदा हो गए।

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर उनका झण्डा गीत प्रस्तुत करते हुए हम श्यामलाल गुप्त जी के सम्मान में नमन् करते हैं।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,

वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा…।

स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,

कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा…।

इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,

बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा…।

आओ! प्यारे वीरो, आओ।
देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ,

एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा…।

इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,

विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा…।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here