नालंदा विश्ववि‌द्यालय: नीतीश ने मोदी को पूरा सच क्यों नहीं बताया?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज (19 जून, 2024) बिहार के राजगीर में नालन्दा विश्वविद्यालय के नवनिर्मित परिसरों का विधिवत उद्‌घाटन किया। इस अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्राचीन व नवीन नालंदा विवि का आधा-अधूरा परिचय प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत किया। प्राचीन मगधराज्य में स्थित विश्व के प्रथम एवं विशाल विश्वविद्यालय का संक्षिप्त इतिहास बताते बताते यह क्यों भूल गए कि 12वीं शताब्दी में विश्व की इस अनमोल धरोहर को तुर्की के हमलावर सेनापति इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार ने आग लगा कर नष्ट तो किया ही, उसमें अध्ययन करने वाले 10 हजार छात्रों व 2000 आचार्यों की क्रूरता से हत्या की थी और आवासीय विश्वविद्यालय के 300 कक्षों, 7 बड़े कमरों व 9 मंजिला पुस्तकालय को 90 लाख पांडुलिपियों एवं 3 लाख से अधिक पुस्तकों को भस्म कर डाला था। पुस्तकालय की आग, तीन महीनों तक धधकती रही थी।

नीतीश बाबू ने मोदी जी के सामने सिर्फ यह कहा- ‘दुर्भाग्य से विश्व का पहला विश्वविद्यालय 12वीं शताब्दी में नष्ट हो गया।’ चूंकि नालंदा विश्वविद्यालय नीतीश बाबू के गृह जनपद में है और नया विश्वविद्यालय बनवाने में उनका सर्वाधिक योगदान है, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री को वह सब बताया कि कैसे यहां ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को दो-दो बार लाया गया कैसे प्रणव मुखर्जी ने नये विश्वविद्यालय की स्थापना में रूचि ली और कैसे संसद ने 2010 में नये विश्वविद्यालय का संकल्प पारित किया। यह उल्लेख सामयिक भी था और आवश्यक भी किन्तु हमारा कहना है कि जब नीतीश बाबू राजगीर को पाँच धर्मों का केन्द्र बताते समय मखदूम शाह के नाम का उल्लेख कर रहे थे, तब उन्हें बख्तियार खिलजी की करतूत पर भी बोलना चाहिए था।

वैसे, यह नहीं माना जा सकता कि नरेन्द्र मोदी को नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता और उसके पराभव के विषय में कुछ ज्ञात न हो। वे जहां भी जाते हैं उसकी भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक स्थिति का पहले ही अध्ययन कर लेते हैं। क्या उन्हें ज्ञात नहीं कि 30 एकड़‌ क्षेत्र में विश्व के पहले आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना कुमार गुप्त ने 450 ई. में की थी? प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग यहाँ का छात्र और आचार्य रहा था? नागार्जुन, शीलभद्र, स्थिरमति जैसे आचार्य मंगोलिया, कोरिया, जापान, चीन, इंडोनेशिया, फारस, तुर्की, ईरान आदि देशों से आए विदेशी छात्रों को दर्जनों विषयों की शिक्षा देते थे? सर फ्रांसिस बुकानन ने दुनिया को नालन्दा विश्वविद्यालय से परिचित कराया और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संस्थापक इंजीनियर अलेक्जेंडर कनिंघम ने नालंदा के खंडहरों को खोज निकाला, जो 1853 से 1873 भारत में रहे। नालंदा विवि के खंडहरों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है। अच्छा होता कि नीतीश बाबू इस सब का स्वागत भाषण में उल्लेख करते।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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