पटना हाईकोर्ट ने नगरीय निकाय चुनाव पर रोक लगाई

पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने बिहार के स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्गों को आरक्षण दिए जाने के मामले पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य घोषित कर चुनावी प्रक्रिया को फिर से शुरू कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने 86 पृष्ठों का निर्णय देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करना चाहिए न की बिहार सरकार के हुक्म से बंध कर।

ट्र‍िपल टेस्‍ट की प्रक्रिया पूरी करना जरूरी 

पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब तक बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर लेती तब तक अति पिछडों के लिए आरक्षित सीट सामान्य माने जाएंगे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अति पिछ़ड़ों को आरक्षण देने से पहले हर हाल में ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है राज्य निर्वाचन आयोग या तो अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य करार देकर चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ाये या फिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ट्रिपल टेस्ट करा कर नये सिरे से आरक्षण का प्रावधान बनाए। 

गौरतलब है कि स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण दिये जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में फैसला सुनाया था जिसके अनुसार स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती।  

क्या है ट्रिपल टेस्ट ?

सुप्रीम कोर्ट ने जो ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला बताया था उसमें उस राज्य में ओबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की अनुशंसा के अनुसार प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने को कहा था। इसके साथ-साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि एससी-एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल सीटों का 50 फीसदी की सीमा से ज्यादा नहीं हो। हाई कोर्ट ने इस मामले पर 29 अक्टूबर को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसका फैसला दशहरा की छुट्टी में सुनाया गया। 

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